धर्मशास्त्र के अध्ययन में दो वाद हैं: कैल्विनवाद और आर्मिनवाद .
दोनों की शिक्षाओं के बीच का अंतर नीचे दिया गया है:
कैल्विनवाद
1.सम्पूर्ण भ्रष्टता की शिक्षा: मनुष्य पूरी तरह से आत्मिक रूप से/पाप में मरा हुआ है, वह परमेश्वर को न चाहता है और नाही चाह सकता है.
इस शिक्षा को और जानने के लिए क्लिक कीजिये: https://logosinhindi.com/doctrine-of-total-depravity/
2.बिना शर्त के चुनाव की शिक्षा: परमेश्वर ने दुनिया की उत्पत्ति से पहले बिना शर्त के और बिना मनुष्य के किसी योगदान के कुछ लोगों को उद्धार के लिए चुन लिया था.
इस शिक्षा को और जानने के लिए क्लिक कीजिये: https://logosinhindi.com/doctrine-of-unconditional-election/
3.सीमित/निश्चित प्रायश्चित की शिक्षा: प्रभु यीशु मसीह सिर्फ चुने हुओं के लिए मरे. यदि वो सबके लिए मरते तो कोई भी नरक नहीं जाते.
इस शिक्षा को और जानने के लिए क्लिक कीजिये: https://logosinhindi.com/the-doctrine-of-limited-atonement/
4.अप्रतिरोध्य अनुग्रह की शिक्षा: परमेश्वर का अनुग्रह जब चुने हुए लोगों के जीवन में काम करता है तो वो उसे नहीं रोक सकते; वो अनुग्रह उन्हें बदल देता है.
इस शिक्षा को और जानने के लिए क्लिक कीजिये: https://logosinhindi.com/irresistible-grace-in-hindi/
5.संतों के अध्यवसाय की या संतों की सुरक्षा की शिक्षा: जिसका वास्तव में उद्धार हुआ है वो उद्धार नहीं खो सकता.
इस शिक्षा को और जानने के लिए क्लिक कीजिये: https://logosinhindi.com/perseverance-of-saints/
आर्मिनवाद:
1.अधूरी भ्रष्टता की शिक्षा: मनुष्य पाप में मरा हुआ नहीं है सिर्फ बीमार है; वह परमेश्वर को चाह और खोज सकता है और ऐसा करके परमेश्वर को पा लेता है.
2.पूर्वज्ञान के आधार पर चुनाव की शिक्षा: परमेश्वर ने भविष्य में झाँक कर ये देखा की कौन कौन यीशु मसीह पर विश्वास करेगा और उनको चुन लिया.
3.सार्वभौमिक प्रायश्चित की शिक्षा: प्रभु यीशु मसीह सारी दुनिया के पापों की क्षमा के लिए मरे और सबको बचाने का प्रयास कर रहें हैं पर मनुष्य के चुनाव के कारण बचा नहीं पा रहे.
4.प्रतिरोध्य अनुग्रह की शिक्षा: परमेश्वर के अनुग्रह का प्रतिरोध किया (को रोका) जा सकता हैं.
5.खोने योग्य उद्धार की शिक्षा: मनुष्य उद्धार पा कर खो सकते हैं और खोते भी हैं.
दोनों में से सही कौन हैं?
कैल्विनवाद बाइबल आधारित और सही है, क्योंकि उसमे परमेश्वर की योजना पूरी होती है, वह पापी मनुष्य पर विजयी होता है, उसके स्वाभाव को बदल देता है और अपनी ही इच्छा और अनुग्रह से उद्धार करता है. परन्तु आर्मिनवाद में सब कुछ मनुष्य पर निर्भर है और उद्धार में उसके चुनाव का योगदान है; वो उसे अपनी मर्जी से पा भी सकता है और खो भी सकता है. कैल्विनवाद परमेश्वर को सर्वसत्ताधिकारी और भाग्य-विधाता बताता है, बल्कि आर्मिनवाद मनुष्य को सर्वसत्ताधिकारी और भाग्य-विधाता बताता है; इसमें अंतिम निर्णय मनुष्य का ही है.
जो भी सच में आर्मिनवादी है वो शैतान से है; उनका उद्धार नहीं हुआ. परन्तु कुछ आर्मिनवादी सिर्फ थोड़े समय के लिए धोखा खाएं हुए हैं या भ्रमित हैं. इन भ्रमित आर्मिनवादियों की शिक्षाएं और प्रार्थनाएं असंगत है. वार्तालाप में वो आर्मिनवादी भाषा बोलते हैं; परन्तु परमेश्वर से प्रार्थना में वो कैल्विनवादी भाषा बोलते हैं. नीचे मैं उनकी इस असंगतता को उजाले में ला रहा हूँ; ताकि जैसी उनकी प्रार्थनाएं हैं; वैसी ही उनकी शिक्षाएं भी हो जाएँ.
भ्रमित आर्मिनवादियों की शिक्षा:
भ्रमित आर्मिनवादियों की शिक्षा यह है की परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए पूर्व निर्धारण नहीं किया है बल्कि इसमें तो हमारा भी भाग है। मसीह को जो कुछ भी करना था उन्होंने कर दिया। अब हम अपनी स्वयं की इच्छा को इस्तेमाल करके येशु के पास आते हैं।
अब देखिये उनकी प्रार्थना कैसे उनकी शिक्षाओं से मेल नहीं खातीहैं:
उनकी प्रार्थना -1
वे इस प्रकार प्रार्थना करते हैं, “परमेश्वर कृपा कर के मेरे भाई पर दया कीजिए । कृप्या उसे अपने पुत्र येशु मसीह की और खींच लीजिये। कृप्या उसके हृदय को बदल दीजिए। कृप्या उसे बचा लीजिए।
मेरी टिप्पणी:
क्या यह आपकी शिक्षा के साथ असंगत नहीं?
उन्हें तो इस प्रकार से प्रार्थना करना चाहिए “परमेश्वर आपसे जो भी हो सकता था आप ने कर दिया। धन्यवाद हमें बचने योग्य बनाने के लिए। अब मेरे भाई को अपनी स्वेच्छा को इस्तेमाल करके आपके पास आने दीजिए। वह स्वयं अपने भाग्य का विधाता है। उसे अपनी स्वेच्छा पूरी करने दीजिए।
उनकी प्रार्थना- 2
हम में कुछ भी अच्छा नहीं है। ना ही हम में ऐसा कोई भी गुण, धार्मिकता या बुद्धि है जिसके बदले हमारा उद्धार हुआ। आपके अनुग्रह की वजह से ही हम बचाए गए हैं। धन्यवाद परमेश्वर हमारे प्रति अपनी दया दिखाने के लिए।
मेरी टिप्पणी:
क्या यह आपकी शिक्षा के साथ असंगत नहीं?
क्या उन्हें ऐसे प्रार्थना नहीं करनी चाहिए ” येशु आप सब के लिए मरे। आप बहुत अच्छे हो। धन्यवाद। देखिए हमारे पड़ोसी अंधकार और अधार्मिकता को इतना ज्यादा प्रिय जानते हैं कि वे आपके पास नहीं आए, परन्तु हमने आपकी ज्योति और धार्मिकता को इतना अधिक प्रिय जाना कि हमने आपके पास आना का चुनाव किया।
आप तो जानते ही हैं की हमने अपने पड़ोसियों को जीतने के लिए बहुत मेहनत की, परन्तु वे तो मूर्ख हैं, लेकिन हम तो इतने बुद्धिमान हैं कि हमने आपके अनुग्रह को स्वीकार किया और आपके पास आने का चुनाव किया। हमने अपने हिस्से का काम किया। अब हमें वो महिमा दीजिए जिसके हम हकदार हैं।
उनकी प्रार्थना – 3
हे परमेश्वर, धन्यवाद हमें अपनी संतान बनाने के लिए। धन्यवाद आपका कि आपने हमें नया जन्म दिया और अब मैं आपका हूं। हमें आपके लिए जीने के लिए मदद कीजिए।
मेरी टिप्पणी:
क्या यह आपकी शिक्षा के साथ असंगत नहीं?
आपकी शिक्षा तो कहती है कि परमेश्वर ने आपको अनंत काल के लिए नहीं चुना है। येशु ने अपने हिस्से का काम किया, आप ने मसीह के अनुग्रह को स्वीकार करके अपने हिस्से का काम किया।
आपकी प्रार्थना तो ऐसी होनी चाहिए ” हे परमेश्वर , धन्यवाद आपका कि हम तो सिर्फ बीमार थे पापों में। हमने दुनिया के अन्य मूर्ख बीमार लोगों के विपरीत आपको हमारे चिकित्सक के रूप में चुना और हमने आपको हमें चंगा करने की अनुमति दी। धन्यवाद।
Nice