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आत्मिक चंगाई – एक प्रमाण 

जितनी भी शारीरिक चंगाईयां थी वो सब वास्तविक  थी (मति 11ः5) ।
यीशु नें कोड़ी को शुद्ध करके कहा जाओ और अपने आप को याजक को दिखाओ (मति 8ः3-4) ।
जो अन्धा था वो अंधा नहीं रहा  ( लूका 18ः43)।
जो गूंगा था वो गूंगा नहीं रहा  (मति 12ः22)।
जो अपंग था वो अपंग ना रहा  ( मति 15ः30)।
जो लंगड़ा था वो लंगड़ा ना रहा  (मति 21ः14)।
जो मरा हुआ था वो जिंदा हो गया  (लूका 8ः54-55)।
जो बीमार था वो बीमार ना रहा  (लूका 7ः21)।
जो दुष्ट आत्मा से ग्रसित था वो अब अपने आपे में आ चुका था  (मरकुस 5ः15)।

यह सभी साक्ष्य हमें यही प्रमाण देते हैं कि जिस किसी को भी यीशु ने चंगा करने के लिए छुआ था वो वाकई अद्भुत रीति से बदल गया और जैसा पहले था वैसा बिलकुल भी नहीं रहा

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क्या यदि कोई प्रभु यीशु के पास आये तो उसमे भी आत्मिक मृत्यु और आत्मिक अंधेपन से ऐसा ही स्पष्ट और आश्चर्यजनक छुटकारा नहीं दिखना चाहिए?

मैं सोच रहा था कि उन दिनों में अगर कोई व्यक्ति किसी अंधे को देखता तो उसके मन में यह विचार जरूर आता होगा कि इसको मसीहा ने अभी तक नहीं छुआ है, क्योंकि अगर मसीहा ने इसे छुआ होता तो फिर यह अंधा नहीं रहता। उसी प्रकार यदि एक व्यक्ति मसीही तो कहलाये पर अभी भी आत्मिक रूप से जिलाये हुए की तरह व्यवहार नहीं कर रहा है, अर्थात मसीहा के पीछे पवित्रता से अपना क्रूस उठा कर नहीं चल रहा है तो स्पष्ट है कि उसकी मसीहा से मुलाकात (encounter) नहीं हुई और वह अभी भी अपने पापों में मरा  हुआ है।

पवित्रशास्त्र बिलकुल स्पष्ट है। यदि कोई कहे की उसकी परमेश्वर के साथ सहभागिता है पर यदि वह अभी भी अन्धकार में चलता है तो वह झूंठा है और उसमे सच्चाई नहीं। (1 युहन्ना 1ः5-6 )

आत्मिक चंगाई उतनी ही स्पष्ट और आश्चर्यजनक है जितनी कि शारीरिक चंगाई, बल्कि उससे भी अधिक। मुझे निश्चय है कि लोगों को जितना अचम्भा लाज़र को मरने के चार दिन बाद ज़िंदा देख कर हुआ होगा उससे भी ज्यादा अचम्भा शाऊल/पौलुस को मसीही के रूप में देख कर हुआ होगा। कम से कम उनको तो जिनको देखने की आँखे दी गई हैं।

परमेश्वर जिस किसी को भी बुलाते हैं सच में पूरी तरह से बदल देते हैं।

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परन्तु कितने सारे लोग अभी भी अपने पापों में बिना किसी झिझक के जी रहें है और मसीही होने का दावा भी कर रहें है। परमेश्वर (जो की सर्व सामर्थी और स्वयं जीवन और पुनुरुत्थान है) जब किसी के जीवन में काम करते हैं तो आप यह सोचने की हिम्मत भी कैसे कर सकते हैं कि वो बिना बदले छोड़ देंगेपरिवर्तन तो होकर ही रहेगा।

क्या ऐसा हो सकता है कि परमाणु बॉम्ब गिराया जाए और फिर भी वह जगह वैसी की वैसी ही रहे, सिवाय जरा सी धूल उड़ने के? और कोई अपने बाल बिखेर के आपके पास आए और बोले कि मुझ पर भी एक परमाणु बॉम्ब गिरा था, तो क्या आप विश्वास कर लेंगे? फिर भी कोई अविश्वासी या नामधारी मसीही क्रिस्चन टी-शर्ट पहन कर चर्च में एक्शन सॉन्ग पर डांस कर ले तो आप उसे मसीही घोषित कर देते हैं!

परमेश्वर के वचन हमारी वास्तविक अवस्था दर्शाते हैं और आह्वान करते हैं कि हम अपने आप को जांचे ( 2 कुरूंथियो 13ः5 ) और अगर कोई बदलाव नहीं पाते हैं तो मतलब साफ है कि अभी तक मसीह से मिलाप नहीं हुआ है  ( 1 युहन्ना 2ः4 )।

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एक आत्मिक रूप से जीवित किया गया व्यक्ति जैसा वह पहले था वैसा बिलकुल भी नहीं रहेगा क्योंकि सम्प्रभु  परमेश्वर अपनी दया और अनुग्रह से हमें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और वफादारी के साथ बोले गये वचन के द्वारा नया जीवन देते हैं (1 पतरस 1:23) और हम एक नयी सृष्टि बन जाते हैं ( 2 कुरूंथियों 5ः17 ) एक ऐसा व्यक्ति जो पहले कभी था ही नहीं और आज इस पृथ्वी पर मौजूद है।

मतलब पश्चाताप सम्मत फल लाना ही आपके उद्धार का सबूत है ( मति 3ः8, लुका 3:8 ) और बदला हुआ जीवन ही बदले हुए हृदय का प्रमाण है ( लुका 19: 8-9 )। पौलूस अब उसी विश्वास का सुसमाचार सुनाने लगा जिसे पहले वो नाश करना चाहता था (गलातियों 1:23)।

हम जो परमेश्वर से जन्मे हैं और बदला हुआ जीवन रखते हैं, यह हमारा कर्तव्य है कि हम भ्रम में पड़े नकली विश्वासियों को बताये  कि वो अभी भी पाप में ही है, और उनकी सारी धार्मिक गतिविधियां व्यर्थ है और वे नरक जा रहें हैसच्चा प्रेम यही है कि हम लोगों को उनकी असली आत्मिक अवस्था से अवगत करवाएं और पश्चाताप के लिए पुकारें।

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बाईबल में हम पढ़ते है, बहुत सारे अपने प्रिय लोगों को यीशु के पास ले कर आये ताकि वे शारीरिक चंगाई पायें (मरकुस 2ः1-5) और अंद्रियास अपने भाई शिमोन को लाया ताकि वो आत्मिक चंगाई पाये ( युहन्ना 1ः40-42 )।

प्रभु यीशु मसीह इसीलिए आये ताकि हम आत्मिक जीवन पायें (युहन्ना 10ः10, 1 युहन्ना 5ः12 )। और अब जब हम आत्मिक जीवन पा चुके हैं तो प्रभु येशु के राजदूत के रूप में इस जीवन के सुसमाचार का प्रचार अविश्वासी और नकली विश्वासी दोनों के बीच में करें ( 2 कुरुंथियो 5:20)।

 

– सौरभ मांडन

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