कौन स्वर्ग जायेगा और कौन नरक यह परमेश्वर ने निर्धारण कर रखा है:
और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था कि उस ने कहा, कि जेठा छुटके का दास होगा।
इसलिये कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं, परन्तु बुलाने वाले पर बनी रहे।
जैसा लिखा है, कि मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसौ को अप्रिय जाना॥ (रोमियों 9:11-13)
आपने देखा कि उन जुड़वां बच्चों के पैदा होने से पहले ही, परमेश्वर ने याकूब को चुन लिया और एसाव को नहीं?
क्योंकि वह मूसा से कहता है, “मैं जिस किसी पर दया करना चाहूँ, उसी पर दया करूँगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूँ उसी पर कृपा करूँगा। इसलिए यह न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात है।” (रोमियों 9:15–16)
यहां आपने देखा कि परमेश्वर जिस किसी को भी बचाना चाहते हैं बचाते हैं और दूसरों को अस्वीकृत कर देतें हैं।
वे ऐसा क्यों करते हैं?
हे मनुष्य, भला तू कौन है, जो परमेश्वर का सामना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़नेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?” क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं कि एक ही लोंदे में से, एक बर्तन आदर के लिये और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? कि परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ्य प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही। और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की. (रोमियों 9:20–23)
इन आयतों में हम पाते हैं कि परमेश्वर ने यह ब्रम्हांड और मनुष्य अपनी महिमा के लिए बनाए है (रोमियो 11:36) । वे चाहते हैं कि उनकी दया और न्याय दोनों के लिए उनकी महिमा हो। वो अपनी दया के लिए महिमा मुठ्ठी भर लोगों को (जिनको उन्होंने संसार की उत्पति से पहले से ही चुन लिया था) बचाने के द्वारा लेते हैं और न्याय के लिए महिमा पापियों को उनके पाप की वजह से नरक में सजा देकर लेंगे.
क्या यह भाग्य-निर्धारण परमेश्वर को हमारे पापों के लिए जिम्मेदार नहीं बना देता?
नहीं, बिल्कुल नहीं! परमेश्वर पवित्र पवित्र पवित्र हैं ( यशायाह 6:3 ). वे ज्योति है, उनमें कुछ भी अंधकार नहीं ( 1 यूहन्ना 1:5 ). पाप करना परमेश्वर के लिए असंभव है. परमेश्वर की पाप न करने की असीम अयोग्यता ही उन्हें झूठे ईश्वरों से पृथक करती है। परमेश्वर ना ही प्रत्यक्ष और ना ही अप्रत्यक्ष रूप से पाप के लिए जिम्मेदार है ( याकूब 1:13)। अगर आपको परमेश्वर की पवित्रता पर जरा भी संदेह है तो क्रूस पर निगाह डालिए। वे धार्मिकता से इतना प्रेम करते हैं कि उन्होंने अपने कुछ चुने हुओं को न्याय (नरक) से बचाने के लिए अपने इकलौते पुत्र को ही नरक पिला दिया अर्थात चुने हुओं के बजाय की सजा दे दी।
उपसंहार:
परमेश्वर के चुने हुए उनसे दया और अनुग्रह पाते हैं, लेकिन पापी अपने पापों की वजह से न्याय (नरक) पाते हैं। किसी के साथ अन्याय नहीं होता है।