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परमेश्वर के प्रबंधन (सृष्टि के रख-रखाव) के कार्य क्या हैं ? (चार्ल्स स्पर्जन प्रश्नोत्तरी-11)

परमेश्वर के प्रबंधन (सृष्टि के रख-रखाव) के कार्य क्या हैं ?

उत्तर: परमेश्वर के द्वारा उसकी परम पवित्रता  (भजन सहिंता 145:17), बुद्धि (यशायाह 28:29) और सामर्थ (इब्रानियों 1:3) के साथ सब प्राणियों को जीने और उनके सब कार्य करने की शक्ति देने और उन पर प्रभुता करने को प्रबंधन के कार्य कहा जाता है (भजन सहिंता  103:19; मत्ती10:29)।

 

साक्षी आयतें:

यहोवा अपनी सब गति में धर्मी
और अपने सब कामों में करुणामय है। (भजन सहिंता 145:17)

यह भी सेनाओं के यहोवा की ओर से नियुक्त हुआ है; वह अद्भुत युक्तिवाला और महाबुद्धिमान है। (यशायाह 28:29)

वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है। वह पापों को धोकर ऊँचे स्थानों पर महामहिमन् के दाहिने जा बैठा (इब्रानियों 1:3)
यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में
स्थिर किया है,
और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। (भजन सहिंता 103:19)

क्या पैसे में दो गौरैयें नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। (मत्ती 10:29)

 

व्याख्या: 

हम इस प्रश्न के उत्त्तर की व्याख्या निम्न शीर्षकों के अंतर्गत करेंगे:

  • परमेश्वर के द्वारा उसकी परम पवित्रता, बुद्धि और सामर्थ के साथ
  • सब प्राणियों को जीने और उनके सब कार्य करने की शक्ति देना
  • उन पर प्रभुता करना

परमेश्वर के द्वारा उसकी परम पवित्रता, बुद्धि और सामर्थ के साथ

परमेश्वर के प्रबंधन का कार्य यह है कि वह अपनी सृष्टि को पवित्रता और धार्मिकता के साथ अपनी अनंत सामर्थ और बुद्धि के द्वारा संभालता है। वो इस सृष्टि में जो भी करता है वह सिद्ध है, त्रुटिहीन हैं, पवित्र है। वह पवित्र है इसलिए उसका इस सृष्टि के साथ किया जाने वाला सम्पूर्ण व्यहवार धर्मी और न्यायपूर्ण है। उसकी बुद्धि अनंत है इसलिए उसने सब कुछ को अपनी महिमा के लिए निर्धारित किया है। इसके साथ साथ वो सर्वशक्तिमान भी है, जिसका अर्थ यह हुआ की वो अपनी अनंत बुद्धि में बनाई गई योजनाओं को पूरी करने में और अपने न्याय को स्थापित करने में समर्थ है।

यहोवा अपनी सब गति में धर्मी
और अपने सब कामों में करुणामय है। (भजन सहिंता 145:17)

यह भी सेनाओं के यहोवा की ओर से नियुक्त हुआ है; वह अद्भुत युक्तिवाला और महाबुद्धिमान है। (यशायाह 28:29)

वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपनी सामर्थ्य के वचन से संभालता है। वह पापों को धोकर ऊँचे स्थानों पर महामहिमन् के दाहिने जा बैठा (इब्रानियों 1:3)

 

सब प्राणियों को जीने और उनके सब कार्य करने की शक्ति देना

“तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृथ्वी और जो कुछ उसमें है, और समुद्र और जो कुछ उसमें है, सभों को तू ही ने बनाया, और सभों की रक्षा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दण्डवत् करती है। (नहेम्याह 9:6)

वह स्वयं ही सब को जीवन और श्‍वास और सब कुछ देता है। उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास की सीमाओं को इसलिये बाँधा है, ((प्रेरितों 17:25-26)

क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते–फिरते, और स्थिर रहते हैं (प्रेरितों 17:28)

यदि वह मनुष्य से अपना मन हटाये
और अपना आत्मा और श्‍वास अपने
ही में समेट ले,
तो सब देहधारी एक संग नष्‍ट हो जाएँगे,
और मनुष्य फिर मिट्टी में मिल जाएगा।  (अय्यूब 34:14-15)

परमेश्वर ही है जो मनुष्यों को और अन्य सब प्राणियों और चीज़ों को अस्तित्व में लाया है और वो उसी की वजह से अस्तित्व में ठहरे हुए हैं। उसी की वजह से वे श्वास लेते हैं, ताकत पाते हैं और अपने सब कार्य करते हैं। उसके बिना कोई भी कुछ भी नहीं कर सकता। उसी में हम चलते फिरते हैं और स्थिर रहते हैं और यदि वो हमें अगली सांस ना दे तो हम नष्ट हो जायेंगे। इसलिए हमें घमंड नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने सृष्टिकर्ता और संभालने वाले परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए।

 

 

उन पर प्रभुता करना

परमेश्वर इस ब्रहम्माण्ड पर प्रभुता करता है। बहुतेरे राजा और प्रभु दिखते हैं, पर वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है। सबको लगता है कि वे कुछ हैं, लेकिन परमेश्वर सब के ऊपर राज (overrule) करता है। वो स्वर्ग में और पृथ्वी पर अपनी संप्रभु (sovereign) इच्छाओं को पूरा करता है।

यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में
स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। (भजन सहिंता 103:19)

पृथ्वी के सब रहनेवाले उसके सामने
तुच्छ गिने जाते हैं,
और वह स्वर्ग की सेना और पृथ्वी के
रहनेवालों के बीच
अपनी ही इच्छा के अनुसार काम करता है;
और कोई उसको रोककर उस से नहीं
कह सकता है, “तू ने यह क्या किया है?”
(दानिय्येल 4:35)

निष्कर्ष

अब हम समझ चुके हैं कि परमेश्वर के द्वारा उसकी परम पवित्रता, बुद्धि और सामर्थ के साथ सब प्राणियों को जीने और उनके सब कार्य करने की शक्ति देने और उन पर प्रभुता करने को प्रबंधन के कार्य कहा जाता है ।

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