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परमेश्वर के विधान (decrees) क्या हैं ? (चार्ल्स स्पर्जन प्रश्नोत्तरी-7)

परमेश्वर के विधान (decrees) क्या हैं ?

उत्तर: परमेश्वर के विधान उसकी अपनी ही इच्छा के मत के अनुसार अनादि उद्देश्य हैं, जिसके द्वारा उसने जो कुछ भी होता है, उस सब को पूर्वनिर्धारित किया है। (इफिसियों 1:11-12)

साक्षी आयतें:

उसी में जिसमें हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहले से ठहराए जाकर मीरास बने कि हम, जिन्होंने पहले से मसीह पर आशा रखी थी, उसकी महिमा की स्तुति के कारण हों। (इफिसियों 1:11-12)

व्याख्या: 

परमेश्वर ने अपने आप में, अनंत काल से, अपनी इच्छा के परम-बुद्धिमान और पवित्र मत के द्वारा, स्वतंत्र रूप से और अपरिवर्तनीय रूप से, सभी चीजें, जो कुछ भी घटित होती है को पूर्वनिर्धारित कर दिया था; तौभी इसमें परमेश्वर न तो पाप का कर्ता है और न ही उसके साथ संगति रखता है; न ही प्राणियों की इच्छा के खिलाफ उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। (1689 लन्दन बैप्टिस्ट विश्वास का अंगीकार)

इस उद्धरण में दिए गए वाक्यांशों और उपवाक्यों पर एक-एक करके दृष्टि करेंगे:

  • परमेश्वर ने किया; किसी और ने नहीं।
  • अपने आप में किया; स्वयं ही के कारण किया; किसी और से प्रभावित हो कर प्रतिक्रिया नहीं दी।
  • अनंत काल से; दुनिया को बनाने से पहले किया।
  • अपनी इच्छा के परम-बुद्धिमान और पवित्र मत के द्वारा किया; कोई गलती नहीं की और कोई पाप नहीं किया, जो की परमेश्वर के लिए असंभव है।
  • स्वतंत्र रूप से किया; स्वयं की मर्जी से किया; किसी बाहरी कारण ने उसे मजबूर नहीं किया।
  • अपरिवर्तनीय रूप से किया; उसकी योजना बदल नहीं सकती।
  • सभी चीजें, जो कुछ भी घटित होती है; सब चीज़ें; कोई अपवाद नहीं छोड़ा।
  • पूर्वनिर्धारित कर दिया था; अनंत में ठहराया की कब, कहाँ, क्या होगा।
  • तौभी इसमें परमेश्वर न तो पाप का कर्ता है; परमेश्वर भविष्य निर्धारित करता है, लेकिन वह पाप का जनक नहीं; मनुष्य स्वयं अपने पाप के लिए जिम्मेदार है।
  • न ही उसके साथ संगति रखता है; परमेश्वर ज्योति है; उसमे कुछ अंधकार नहीं।
  • न ही प्राणियों की इच्छा के खिलाफ उनके साथ जबरदस्ती की जाती है; सब कुछ पूर्वनिर्धारित है, लेकिन फिर भी सब प्राणी जो कुछ भी करते हैं अपने स्वाभाव के अनुसार स्वेच्छा से करते हैं।

बाइबल की निम्न आयतों को ध्यान से पढ़िए। ये परमेश्वर के विधानों या अनंत योजनाओं को स्पष्ट कर देती हैं :

मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूँ जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूँ, ‘मेरी युक्‍ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूँगा।’ (यशायाह 46:10)

उसी में जिसमें हम भी उसी की मनसा से जो अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहले से ठहराए जाकर मीरास बने कि हम, जिन्होंने पहले से मसीह पर आशा रखी थी, उसकी महिमा की स्तुति के कारण हों। (इफिसियों 1:11-12)

किसने यहोवा के आत्मा को मार्ग बताया या उसका मन्त्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है? उसने किससे सम्मति ली और किसने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?  (यशायाह 40:13-14)

आर्मिनवादी शिक्षक अक्सर हमें चुप करवाने के उद्देश्य से हमें पूछते हैं, “तो क्या तुम्हारे परमेश्वर ने हत्या जैसे अपराध भी पूर्वनिर्धारित कर रखें हैं ?” इसके उत्तर में हम दहाड़ के साथ कहते हैं, “हाँ, परन्तु मनुष्य अपने पाप के लिए स्वयं जिम्मेदार है। क्योंकि परमेश्वर ना तो पाप के द्वारा प्रलोभित हो सकता है; ना हीं वो किसी को पाप करने का प्रलोभन दे सकता है (याकूब 1:13)।”

दुनिया का सबसे बड़ा पाप परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित किया था।

दुनिया का सबसे बड़ा पाप है- परमेश्वर के पवित्र बेटे की हत्या। और इसकी योजना परमेश्वर ने बनाई थी, परन्तु मनुष्य ने स्वयं अपने स्वाभाव के अनुसार स्वेच्छा से पाप किया:

उसी को जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधमिर्यों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला। (प्रेरितों 2:23)

क्योंकि सचमुच तेरे सेवक यीशु के विरोध में, जिस तू ने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पीलातुस भी अन्य जातियों और इस्त्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए।

कि जो कुछ तेरे हाथ (तेरी सामर्थ) और तेरे उद्देश्य ने पूर्वनिर्धारित किया था वही करें। । (प्रेरितों  4:27-28)

और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला. (प्रेरितों  3:15)

युसूफ को कौन मिश्रदेश लाया?

युसूफ को उसके भाइयों ने मारना चाहा, परन्तु नहीं मारकर व्यापारियों को बेच दिया। व्यापारियों ने मिश्र देश में पोतीपर को बेच दिया। पोतीपर के पत्नी ने उस पर झूठा इल्जाम लगा के उसे कारागृह में भेज दिया। लेकिन अंत में युसूफ कहता है :

” परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसलिए भेजा कि तुम पृथ्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणों के बचने से तुम्हारा वंश बढ़े।“ (उत्पत्ति 45:7)

तो क्या परमेश्वर ने उसके भाइयों के मन में पाप डाला और उनसे पाप करवाया ? नहीं, वह असंभव है। परमेश्वर भाग्य विधाता है, परन्तु मनुष्य स्वयं ही जिम्मेदार है।

दाऊद से जनगणना किसने करवाई?

दाऊद जनगणना करवाने का पाप करे यह परमेश्वर की योजना थी:

और यहोवा का क्रोध इस्राएलियों पर फिर भड़का और उसने दाऊद को इनकी हानि के लिये यह कहकर उभारा कि इस्राएल और यहूदा की जनगणना करवाए। (2 शमूएल 24:1)

लेकिन प्रलोभन शैतान ने दिया था :

और शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठ कर, दाऊद को उकसाया कि इस्राएलियों की जनगणना करवाए। (1 इतिहास  21:1)

और दाऊद ने स्वयं के दिल के छलावे में आकर अपनी मर्जी से पाप किया :

प्रजा की गणना करने के बाद दाऊद का मन व्याकुल हुआ। और दाऊद ने यहोवा से कहा, यह काम जो मैं ने किया वह महापाप है। तो अब, हे यहोवा, अपने दास का अधर्म दूर कर; क्योंकि मुझ से बड़ी मूर्खता हुई है।(2 शमूएल 24:10)

उद्धार में परमेश्वर की सम्प्रभुता

कुछ झूठे शिक्षकों के अनुसार परमेश्वर प्रकृति में तो संप्रभु है, परन्तु उद्धार के क्षेत्र में मनुष्य संप्रभु है। क्या ऐसा है ? नहीं। ये आयतें पढ़िए :

और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे : उसने कहा, “जेठा छोटे का दास होगा।” जैसा लिखा है, “मैं ने याकूब से प्रेम किया, परन्तु एसाव को अप्रिय जाना।” ( रोमियों 9:11-13)

सो वह जिस पर चाहता है, उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है। (रोमियों 9:18)

परन्तु वह मनुष्यों को स्वयं को उनके दिलों की कठोरता के लिए जिम्मेदार ठहरता है:

मैं सारे दिन अपने हाथ एक आज्ञा न मानने वाली और विवाद करने वाली प्रजा की ओर पसारे रहा (रोमियों 10:21)

निष्कर्ष

“यदि पूरे ब्रह्मांड में एक भी स्वतंत्र अणु है, तो परमेश्वर संप्रभु नहीं है। और यदि परमेश्वर संप्रभु नहीं है, तो वह परमेश्वर नहीं है।” – आर.सी. स्प्राउल

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