तीसरी आज्ञा कहती है:
“तू अपने प्रभु परमेश्वर का नाम व्यर्थ ना लेना. जो कोई उसका नाम व्यर्थ लेगा उसे वो किसी रीती से निर्दोष नहीं ठहराएगा.”
परमेश्वर का नाम व्यर्थ लेने का अर्थ क्या है? मूल भाषा में “लेने” के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है वो है “नासा”. जिसका अर्थ सिर्फ “लेना” ही नहीं होता बल्कि “धारण करना” या “प्रतिनिधित्व करना” भी होता है. सभी बाइबल विद्वान मानते हैं की तीसरी आज्ञा सिर्फ परमेश्वर के नाम को व्यर्थ बोलने को ही वर्जित नहीं करती, बल्कि उसके नाम का गलत प्रतिनिधित्व करने को भी वर्जित करती है. इस अर्थ के अनुसार कोई सी भी चीज़ जो हम बाइबल के विपरीत करते हैं, वो सब तीसरी आज्ञा का उल्लंघन है.
1. यदि कोई बहार से तो मसीही कहलाये पर उसकी ज़िन्दगी पापमय हो तो वह परमेश्वर के नाम को गलत ले रहा है.
2. यदि कोई मसीही कहलाये और झूठ बोले, जालसाजी करे, धोखा धड़ी करे तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ लेता है.
3. पुराने नियम में यदि कोई परमेश्वर के नाम की झूठी कसम खाता था तो वो परमेश्वर के नाम को व्यर्थ लेता था.
4. नए नियम में हमे कुछ ख़ास कानूनी परिस्थितियों के अलावा हमारी दैनिक ज़िन्दगी में कसम खाना वर्जित है. इस आज्ञा के अनुसार कोई भी मनुष्य यदि परमेश्वर के नाम से कसम खाये तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
5. यदि हमारा हाँ का हाँ और ना का ना नहीं होता है और जो हमने बोला है उसके विपरीत करते है अर्थात अपनी जुबान नहीं रखते है तो यह परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेना हुआ.
6. यदि कोई मुँह से तो आराधना करता है परन्तु उसका मन परमेश्वर से दूर है तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ ले रहा है.
7. यदि कोई अपने कार्यस्थल में काम चोरी करे तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
8. यदि कोई परमेश्वर के वचन की गलत व्याख्या करे तो वह परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
9. यदि कोई आराधना के नाम पे बाइबल के विपरीत गीत गाये तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
10. यदि कोई झूठा प्रचारक परमेश्वर के नाम पर लोगों से पैसा लेता है तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
11. यदि कोई बाहर से कुछ और अंदर से कुछ अर्थात पाखंडी हो तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
12. यदि कोई चर्च में ऐसे पद पर है जिसके वो योग्य नहीं है तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
13. यदि कोई बिना सोचे-समझे बिना गंभीरता के परमेश्वर का नाम ले तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
14. यदि कोई परमेश्वर के नाम को गाली, गुस्सा, आश्चर्य, वासना, पापमयी आनंद आदि को व्यक्त करने के लिए ले तो वह परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
15. यदि कोई बिना सोचे समझे अय्यो प्रभु, ओह माय गॉड, ओह गॉड, ओह गॉड, दिस इस सो डर्टी आदि कहे, तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
16. यदि कोई पति अपने पति से प्यार ना करें और यदि कोई पत्नी अपने पति के अधीन ना रहे तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेते हैं.
17. यदि कोई मसीही अपने उठने-बैठने, चलने फिरने, पहनावे में या बात करने में कोई भी अश्लील हरकत करे या उसकी और संकेत भी करे तो वो परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेता है.
मैंने कुछ परिस्थितिया आपको समझाने के लिए ऊपर बताई है, लेकिन ये समाप्त नहीं हुई. ये आज्ञा हमारे समस्त जीवन को अपने अंदर समाहित कर लेती है. जीवन में कुछ भी पाप किया तो ये इस आज्ञा का उल्लंघन है.
परमेश्वर का नाम कैसे ले?
ऊपर लिखी हुई चीज़ों का उल्टा करके.
ध्यान रखें यीशु मसीह ने जब प्रार्थना करना सिखाया तो पहली बात यही सिखाई: “तेरा नाम पवित्र माना जाये.” तो हम जो भी कहें या करें सिर्फ और सिर्फ परमेश्वर की महिमा के लिए करें और उसी में ये आज्ञा पूरी होगी.
Thank you very much..
Thank for clarity in depth