Reformed baptist church in jaipur

मसीहियत दिल का धर्म है। साप्ताहिक शैक्षणिक भक्ति सन्देश (सप्ताह -12)

मसीहियत बाहरी धार्मिक गतिविधियों का धर्म नहीं है, बल्कि दिल का धर्म है। अर्थात एक सच्चा मसीही परमेश्वर से अपने दिल से, अपनी भावनाओं से, अपने अंतर्मन से, अपने आत्मा से प्रेम करता है और उसमे आनंदित होता है, उसमे मगन रहता है, उसमे घमंड करता है, उसके बारे में डींग भरता है, उसकी प्रशंसा करता है, उसके गीत गाता है, उसको निहारता है, उस पर मनन करता है, उसकी लालसा करता है, उसके बिना बेक़रार रहता है, उसके साथ समय बिताता है, उसके बारे में सोचता रहता है, उसके बारे मैं दूसरों से बातें करता है और उसको प्रसन्न करने और उसका सम्मान करने के लिए अपने प्राण तक बिछा कर रखता है। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि बाइबल सम्मत बाहरी गतिविधियों का अपना महत्तव नहीं होता, परन्तु मैं यह कह रहा हूँ यदि बाहरी गतिविधियां दिल से और हर्ष से नहीं है तो व्यर्थ है। फरीसियों का धर्म व्यर्थ था, क्योंकि वो मंदिर जाते थे, प्रार्थना-उपवास करते थे, दान देते थे और अन्य धार्मिक क्रिया कलाप करते थे, लेकिन उनके दिल में परमेश्वर के लिए कोई लालसा और प्यार नहीं था, वे परमेश्वर में आनंदित नहीं थे, वे परमेश्वर में घमंड नहीं करते थे। वो ऐसे थे जैसे आत्मा बिना शरीर। हमको धार्मिक क्रिया-कलाप फरीसियों कि तरह नहीं करना चाहिए, बल्कि हमारे बाहरी क्रिया-कलाप हमारे दिल, हमारे आत्मा, परमेश्वर के लिए हमारी लालसा, परमेश्वर में हमारे आनंद और परमेश्वर में हमारे घमंड की अभिव्यक्ति होने चाहिए। इसको इस तरह समझने कि कोशिश करें:

यदि मेरी पत्नी मेरे घर आते ही रोबोट कि तरह मुझसे गले मिले, मुझे चुम्बन करे, मुझे पानी पिलाये और खाना खिलाये, लेकिन उसका दिल मेरे घर आने पर हर्षित ना हो, तो क्या उसका मेरे प्रति समर्पण असली होगा? क्या उसके क्रिया कलापों से मुझे सम्मान मिलेगा? क्या मैं इससे प्रसन्न होऊंगा ? नहीं, क्योंकि उसका दिल इन सब गतिविधियों में नहीं है।

यदि मैं अपनी पत्नी के लिए एक गुलाब का फूल लेकर आऊं और उसको गले लगाऊं और चुम्बन करूँ और जब वह पूछे कि मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ और मेरा जवाब हो, क्योंकि ये मेरा कर्त्तव्य है, तो क्या मेरा मेरी पत्नी के प्रति मेरा समर्पण और प्यार असली है ? क्या इससे उसको सम्मान मिल रहा है ? क्या मेरे बाहरी क्रिया कलाप से वो प्रसन्न होगी ? नहीं कदापि नहीं, क्योंकि यद्यपि मैं कुछ गतिविधियां कर रहा हूँ पर मेरा दिल और मन और आनंद मेरी पत्नी मैं नहीं है।

पति पत्नी एक दूसरे से क्या चाहते हैं ? एक दूसरे का दिल। परमेश्वर हमसे क्या चाहता है? हमारा दिल, हमारी भावनाएं, हमारी लालसा, हमारा आनंद, हमारा प्यार :

हे मेरे पुत्र, मुझे अपना दिल दे दे। (नीतिवचन  23:26)

तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्‍ति के साथ प्यार कर । (व्यवस्थाविवरण 6:5)

यहोवा में आनंदित हो। (भजन सहिंता  34:4)

याद रहे परमेश्वर हममे सिर्फ उतनी महिमा पाता है, जितना हम उसमें आनंदित होते हैं।

 

प्रोत्साहन:

आइये हम अपने दिल परमेश्वर की और उठायें, अपनी भावनाएं उस पर लगाएं , अपने स्नेह उस पर ठहराएं, उसकी उपस्थिति के रोमांच से भर जाएं।

उदाहरण प्रार्थना:

है पिता, मेरा धर्म सिर्फ बाहरी क्रिया कलाप ना हो, परन्तु भीतर की वास्तविकता हो। मैं अपने दिल से आपको चाहूँ। मुझ पर दया कीजिये।

शिक्षाएं (Doctrines Involved in this Devotional):

आराधना के विषय में अध्ययन, मसीही विश्वास के बारे में अध्ययन (Worshipology; True Faith; True Religion)

 

अधिक अध्ययन करने के लिए:

https://www.desiringgod.org/messages/when-i-dont-desire-god-part-2/excerpts/god-wants-your-delight-not-just-your-decision

https://www.desiringgod.org/messages/getting-to-the-bottom-of-your-joy

https://www.desiringgod.org/messages/getting-to-the-bottom-of-your-joy

https://www.desiringgod.org/messages/getting-to-the-bottom-of-your-joy

5 thoughts on “मसीहियत दिल का धर्म है। साप्ताहिक शैक्षणिक भक्ति सन्देश (सप्ताह -12)”

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