“दर्शन की तराई” प्यूरिटन धर्मोपदेशकों की प्रार्थनाओं का एक अत्यंत ही अद्भुत संग्रह है। इस पुस्तक का शीर्षक यशायाह 22:1 में से लिया गया है। अनगिनत लोगों के जीवनों को प्रभावित करने वाले परमेश्वर के दास जॉन मैकआर्थर इस पुस्तक की अत्यंत प्रशंसा करते हैं। इस पुस्तक में दी गई प्रार्थनाओं के द्वाराआपका प्रार्थना का जीवन बहुत ही गहरा हो जायेगा। इसके संपादक आर्थर बेनेट ने ये प्रार्थनाएं थॉमस वॉटसन, रिचर्ड बाक्स्टर, जॉन बनयन, ऑगस्टस टॉपलेडी जैसे महान प्यूरिटन उपदेशकों की प्रतिष्ठित कृतियों (classics) में से ली है। इस किताब की परिचयात्मक प्रार्थना आर्थर बेनेट ने ही लिखी है। इसे पढ़कर आपका ह्रदय अत्यंत आशीषित होगा। मैं यह अंग्रेजी प्रार्थना और उसका अनुवाद नीचे दे रहा हूँ :
सर्वोच्च, पवित्र, नम्र और दीन प्रभु *
तू मुझे दर्शन की तराई में ले आया,
जहाँ मैं नीचे गहराई में हूँ, पर तुझे ऊँचे पर देखता हूँ;
पाप के पर्वतों से घिरा मैं तेरी महिमा को देखता हूँ।
मैं विरोधाभास** के द्वारा सींखु कि
नीचे जाने वाला रास्ता ही ऊपर ले जाता है,
निम्न होना ही ऊँचा होना है,
टूटा हुआ दिल ही चंगा किया हुआ दिल है,
शोकित मन ही आनंदित मन है,
पश्चाताप करने वाला आत्मा ही विजयी आत्मा है,
अपने पास कुछ नहीं होना ही सब कुछ का मालिक बनना है,
क्रूस लेकर चलना ही मुकुट पहनना है,
देना ही प्राप्त करना है,
तराई/घाटी ही दर्शन का स्थान है।
प्रभु, बहुत गहरे कुओं में से दिन के समय में तारे दिख जाते हैं,
और कुएं जितने ज्यादा गहरे होते हैं,
तारे उतने ही ज्यादा चमकते हैं;
मुझे अपने अंधकार में तेरी ज्योति,
मेरी मृत्यु में तेरा जीवन,
मेरे दुःख में तेरा आनंद,
मेरे पाप में तेरा अनुगृह,
मेरी कंगाली में तेरा धन,
मेरी तराई में तेरी महिमा पाने दे।
* परमेश्वर राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है। वह किसी के सामने नम्र और दीन नहीं हो सकता। फिर किस तरह की नम्रता और दीनता की बात की जा रही हैं? संभवतया, लेखक यीशु मसीह के अवतार की और इशारा कर रहा है कि यीशु मसीह परमेश्वर क़ि असीम बुद्धि और महान योजना के अंतर्गत मनुष्य रूप में नम्र और दीन बनकर आया (मत्ती 11:29; 20:28; फिलिप्पियों 2:6)। या यूं कहें कि इन शब्दों के द्वारा लेखक परमेश्वर की कृपालुता कि और इशारा कर रहा है जो हमें प्रभु यीशु मसीह के नम्र और दीन होकर अवतार लेने, दुःख सहने और क्रूस पर मरने के द्वारा प्राप्त हुई।
**विरोधाभास एक अलंकार है, जिसमे ऐसा लगता है कि दो अंतर्विरोधी बातें कही जा रही हो, पर ऐसा होता नहीं है। वहां कोई अंतर्विरोध नहीं होता। वहाँ गहरा मतलब होता है। उदहारण के लिए प्रभु ने मत्ती 10:39 में कहा:
जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा।
देखने पर अंतर्विरोध लगता है, परन्तु उसका गहरा मतलब यह है कि जो दुनिया से डर के अपना प्राण बचाएगा, वो उसे नरक में खोयेगा और जो प्रभु से डर के दुनिया में अपना प्राण दे भी दे, तो भी स्वर्ग में अनंत जीवन पायेगा।
Lord, high and holy, meek and lowly,
Thou has brought me to the valley of vision,
where I live in the depths but see thee in the heights;
hemmed in by mountains of sin I behold
Thy glory.
Let me learn by paradox
that the way down is the way up,
that to be low is to be high,
that the broken heart is the healed heart,
that the contrite spirit is the rejoicing spirit,
that the repenting soul is the victorious soul,
that to have nothing is to possess all,
that to bear the cross is to wear the crown,
that to give is to receive,
that the valley is the place of vision.
Lord, in the daytime stars can be seen from deepest wells,
deepest wells,
and the deeper the wells the brighter
Thy stars shine;
Let me find Thy light in my darkness,
Thy life in my death,
Thy joy in my sorrow,
Thy grace in my sin,
Thy riches in my poverty
Thy glory in my valley.
Thank you bhaiya hindi m translate karke समझाया bahut hi deep prayer h