Reformed baptist church in jaipur

आइये आत्मिक तमीज सींखे

आइये आत्मिक तमीज सींखे

बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के सामने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है,  इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों॥ (सभोपदेशक 5:2)

तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा (निर्गमन 20:7)

उपर्युक्त आयत में परमेश्वर  चेताता है की हमे उसके सामने और उसके बारे में  सोच समझ कर बोलना चाहिए. क्या हम अपने बड़ो से और उनके बारे में बिना सोच समझ कर बोल सकते हैं ? नहीं, हमारे शब्द सम्मानजनक होने चाहिए. क्या हम अपने शिक्षक, पासवान, से कुछ भी बिना सोचे समझे बोल सकते हैं? स्पष्ट रूप से नहीं. क्या हम हमारे जिला कलेक्टर, मुख्यमंत्री, या प्रधानमंत्री से बदतमीजी से बोल सकते हैं? नहीं. जितना बड़ा व्यक्ति का ओहदा होता है हम उतने ही भय और समझ के साथ बोलते है. तो हमे परमेश्वर के सामने और उसके बारे में कितना भय, और समझ के साथ बोलना चाहिए! आइये मैं आपको बताता हूँ कि किन किन स्थानों पर हमे अपनी शब्दावली को सम्मानजनक बनाना है.

1. हमने अक्सर पासवानों को बोलते सुना होगा की यीशु मसीह को अपना प्रभु बना लीजिये या विश्वासियों को बोलते देखा होगा की मैंने यीशु मसीह को इस इस साल में अपना प्रभु बना लिया. ये ईशनिंदापूर्ण (परमेश्वर का तिरस्कार करने वाले) शब्द हैं. हम यीशु मसीह को प्रभु नहीं बनाते . वो तो अनादिकाल से अनंतकाल तक प्रभु या मालिक है. वो तो इस ब्रहम्माण्ड का सृष्टिकर्ता, इसको चलाने वाला और इस पर राज करने वाला संप्रभु महाराजा है- सर्वसत्ताधिकारी है. क्या  जिसकी वजह से मनुष्यों के लिए अनगिनत और पृथ्वी से कई कई गुना बड़े  तारे अपनी जगह पर स्थिर है, गृह उपग्रह अपनी अपनी धूरी पर घूम रहे हैं, रात और दिन होते हैं , ऋतुएं बदलती हैं, महासागरों  का जल ठहरा हुआ है , जिसकी सेवा और आराधना अनगिनत स्वर्गदूत करते हैं, जिसके नाम से शैतान
 और उसका साम्राज्य काँपता है, जिसने हमे अपनी माता के गर्भ में सिरजा  है और इतना बड़ा किया है, जो हमे दया करके श्वांस देता है , क्या हम उसको अपना प्रभु बनाये. नहीं वो तो सदा से इस समस्त सृष्टि पर प्रभु है.

तो फिर सही शब्द क्या हैं ? प्रभु यीशु मसीह की प्रभुता के सामने समर्पण कर दीजिये.

2 . आपने पासवानों को कहते सुना होगा की प्रभु यीशु मसीह को स्वीकार कर लो या विश्वासियों को कहते सुना होगा कि मैंने इस-इस वर्ष में यीशु मसीह को स्वीकार किया. हमने यीशु मसीह को स्वीकार किया या यीशु मसीह ने हमे? भिखारी हम हैं या यीशु मसीह ? जरूरतमंद हम हैं या यीशु मसीह ? महाराजा हम हैं या प्रभु यीशु मसीह ? विद्रोह करके परमेश्वर से हम अलग हुए थे या उसने विद्रोह किया था की वो लौट कर आये और हम उसको स्वीकार करें ? बाइबिल में तो कही भी इन शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया. फिर हम क्यों करते हैं?

यदि आपको यूहन्ना 1:12 याद आ रहा है जिसमे ग्रहण करना शब्द इस्तेमाल किया गया है , तो ध्यान रहे ग्रहण करने से क्या तात्पर्य है ये उसी आयत में लिखा है-

परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। (यूहन्ना 1:12)

जितनों ने उसे ग्रहण किया  अर्थात उसके नाम पर विश्वास किया. समझे आप? ग्रहण करना और विश्वास करने का अर्थ एक सामान है. इन दोनों शब्दों का अर्थ है प्रभु यीशु मसीह के सामने एक मात्र उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में समर्पण करना. याद रखिये हमने उससे विद्रोह किया है तो अब समर्पण ही करेंगे ना ? या स्वीकार?

अब शायद आप कहेंगे की प्रकाशितवाक्य में तो लिखा है कि यीशु हमारे दिल का दरवाजा खटखटा रहा है और हमे दरवाजा खोल के उसको अंदर बुलाना है- अर्थात उसे अपने दिल में स्वीकार करना हैं. जरा रुकिए. आप जिस आयत की बात कर रहे है वो प्रकाशितवाक्य 3 की बीसवी आयत है:

देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ। (प्रकाशितवाक्य 3:20)

पहली बात तो इस आयत में कहीं भी दिल शब्द नहीं है. फिर आपने कहाँ से सुना ये कि दिल के द्वार खटखटा रहा है. मैं बताता हूं. कुछ प्रचारकों ने इस आयत को रुमानिकृत (romanticize) कर दिया अविश्वासियों को लुभाने के लिए. यहाँ तक की गिडियन
इंटरनेशनल द्वारा वितरण के लिए छपी बाइबल के अंत में भी इस आयत को सन्दर्भ से बाहार  दे दिया है.

अब मैं आपको बता दूँ की ये आयत सुसमाचार प्रचार के वक्त नहीं प्रयोग की जा सकती. क्योंकि ये एक नामधारी या झूठी कलीसिया को लिखी गई है. आप प्रकाशितवाक्य अध्याय 3 को पूरा पढ़ेंगे तो इस बात को जान पाएंगे. इन शब्दों का प्रयोग यहाँ इस लिए किया गया हे क्योंकि लाओदिसिया की ये कलीसिया मसीही कहलाती तो थी लेकिन मसीह इनमे नहीं था; इनके बाहार था. मसीह यहाँ सिर्फ चित्रात्मक और मानवरूपक भाषा का उपयोग कर रहा है -उसका कहने का मतलब है कि मैं तुममे नहीं रहता; यदि तुम दरवाजा खोलो अर्थात पश्चाताप करो तो मैं अंदर आ जाऊंगा अर्थात तुम्हारे
जीवन और कलीसिया में आ जाऊंगा और हम साथ में भोजन करेंगे अर्थात हमारा घनिष्ट सम्बन्ध होगा. वर्ना सोचिये यीशु मसीह जो खुद दरवाजा  (यूहन्ना 10:7) और मार्ग (यूहन्ना 14:6) है, वो क्यों कही पर खटखटाएगा? यदि आप फिर भी कहे की वो तो अपनी भेड़ो को ढूंढने आया तो हाँ आप सही बोल रहे है. इसका मतलब ये नहीं की ज़रूरतमंद की तरह कही पर इंतज़ार करेगा. भेड़ो वाली पूरी आयत को पढ़ते हैं :

मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। (यूहन्ना 10:27)

जितने उसके चुने हुए लोग है उतने उसके पीछे हो लेते है.

3. कुछ प्रचारक ऐसे बोलते है की यीशु को चुन लो आज निर्णय ले लो. उद्धार आपके चुनाव के द्वारा नहीं होता. उद्धार परमेश्वर के चुनाव के द्वारा होता है. निम्नांकित आयतो को देखिये:

तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है . (यूहन्ना 15:16)

जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। (प्रेरितों के काम 13:48)

कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; (यूहन्ना 6:44)

“क्योंकि वह मूसा से कहता है, मैं जिस किसी पर दया करना चाहूं, उस पर दया करूंगा, और जिस किसी पर कृपा करना चाहूं उसी पर कृपा करूंगा।

सो यह न तो चाहने वाले की, न दौड़ने वाले की परन्तु दया करने वाले परमेश्वर की बात है।”                                             (रोमियॉं 9:15-16)

निर्णय कर लो, परमेश्वर को चुन लो शब्द धर्मशास्त्र के अनुसार कितने त्रुटिपूर्ण और तिरस्कारजनक है! परमेश्वर ने हमे सृष्टि के निर्माण के पहले चुन लिया था. उद्धार न तो चाहने वाले की बात है ना दौड़ने वाले की बल्कि दया करने वाले की. जी हाँ जिनको उसने चुना है वो ही आयेगा.

तो फिर कौनसे शब्दों मैं प्रचार किया जाये? उन्ही में जिन में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने, यीशु मसीह ने, और प्रेरितों ने किया. सुसमाचार सुनाने के बाद उन्हें विश्वास करने और पश्चाताप करने को कहे जिसका अर्थ है पापी को यीशु के सामने उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में समर्पण करना होगा.

4. आपने यह भी सुना होगा की यीशु को अपना दिल दे दो . प्रचारकों ने सुसमाचार का रोमानीकरण कर दिया. सज्जनो जागिये, ये यीशु मसीह का महिमावान सुसमाचार है; बॉलीवुड या हॉलीवुड नहीं.

हम जान ले की कोई भी व्यक्ति कभी भी अपना दिल परमेश्वर को देने के द्वारा उद्धार नहीं पाया. हम अपने कुछ देने के द्वारा नहीं बचाये जाते है परन्तु परमेश्वर के देने के द्वारा बचाये जाते है. – ऐ. डबल्यू. पिंक .

इसको निम्नांकित आयतों में भी देखिये:

 “यह सुनकर, चेलों ने बहुत चकित होकर कहा, फिर किस का उद्धार हो सकता है? यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है। ” (मत्ती 19:25-26)

” क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।”  (इफिसियों 2:8-9)

और आपको यह भी बता दूँ की विश्वास और पश्चाताप परमेश्वर की और से आपको दान है. विश्वास के स्रोत आप नहीं है. ये परमेश्वर की और से आप को दान है . परमेश्वर के एक दास ने इसको इस तरह से कहा है:

विश्वास पापी को परमेश्वर की और से दान है ना की पापी की और से परमेश्वर को.- डेविड एन. स्टील

इफिसियों 2:8 को पढ़ेंगे तो भी यह स्पष्ट हो जायेगा की विश्वास परमेश्वर की और से दान है . इसके अलावा निम्नांकित आयतो को भी देखिये:

और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करने वाले यीशु की ओर ताकते रहें;  (इब्रानियों 2:12)

इसी तरह से पश्चाताप भी परमेश्वर की ओर से दान है (प्रेरितों के काम 5:31, 11:18, 2 तिमुथियस 2:25).

5. आपने कई लोगों को प्रार्थना में शैतान, बिमारियों , आदि को डाटते हुए और आज्ञा देते हुए देखा होगा. आप पहले ये निर्णय कर ले की आप प्रार्थना कर रहे है या आज्ञा दे रहे है? ये दोनों बिल्कुल
अलग अलग है . इनमे जमीन आसमान का अंतर है. इनका मिलान संभव ही नही है. प्रार्थना मांगना है और आदेश देने मे अधिकार और प्रभुत्व आता है . आपने आज्ञा देकर आज तक कितने लोगों के कैंसर, एड्स ,और अन्य लाइलाज बिमारियों को चंगा किया है ? आदेश देकर कितने अंधों को दृष्टि दी है ? कितने बहरो को श्रवण शक्ति दी है ? कितनी दुष्टात्माओं को आज्ञा दी और वो एक ही आदेश पर निकल गई? यदि आप ईमानदार हैं , दुष्टात्माओं के छलावे में नहीं हैं और अपने दिल की दुष्टता में नहीं आ रहे है तो आप कहेंगे एक भी चंगाई आप की आज्ञा से नहीं हुई . क्या आपने कभी सोचा है की आप के आज्ञा देने से ऐसा क्यों नहीं हो रहा  है? क्योंकि वो प्रेरितों और उनके कुछ नज़दीकी कार्यकर्ताओं को दिया गया विशेष दान था और उसका उद्देश्य था जब तक की नया नियम पूरा नहीं हो जाये तब तक प्रेरितों के परमेश्वर से मिले प्रकाशनो को दृढ़ करे या उनका सबूत दे.

ये आपके लिए नहीं था. बस आप आज तक कुछ आयतों को सन्दर्भ के बहार लेके करने की कोशिश कर रहे थे. मै किसी और लेख में आपको ये सब और भी विस्तृत रूप में और सबूत दे दे कर बताऊंगा  अब मेरा प्रश्न हे जब भी आपने प्रभु यीशु मसीह के नाम से किसी बीमारी को या दुष्टात्मा को डाटा और तुरंत चंगाई नहीं मिली तो क्या आपने  यीशु का नाम व्यर्थ नहीं लिया? आपने आज्ञा दी सब नामों से ऊँचे नाम यीशु मसीह के नाम से और बीमारी नहीं मिटी , क्या ये यीशु मसीह का अपमान नहीं? तो अब मेरा आप से अनुरोध हे आप प्रार्थना करे, विनती करे , दया की भीख मांगे , लेकिन आज्ञा ना दे. प्रार्थना में शैतान से बात न करे और उसे ना डांटे. ये पढ़िए:

“उसी रीति से ये स्वप्नदर्शी भी अपने अपने शरीर को अशुद्ध करते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं; और ऊंचे पद वालों को बुरा भला कहते हैं। परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विवाद करता था, तो उस को बुरा भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, कि प्रभु तुझे डांटे।” (यहूदा 8,9)

यदि सन्दर्भ देखे तो आयत 8 में ऊँचे पद वालों से लेखक का तात्पर्य है स्वर्गदूत चाहे वे गिरे हुए या पवित्र हों. इसके अनुसार हम शैतान और दुष्टात्मा को नहीं डाट सकते. स्वयं मीकाएल ने भी शैतान को डाटने की हिम्मत नहीं की. उसने कहा प्रभु तुम्हे डाटे. 

आशा करता हूँ आप ये आत्मिक तमीज अपने अंदर विकसित करेंगे।

7 thoughts on “आइये आत्मिक तमीज सींखे”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *