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उस अवस्था की पापमयता किन बातों में निहित है, जिसमें मनुष्य गिर गया ? (चार्ल्स स्पर्जन प्रश्नोत्तरी-17)

उस अवस्था की पापमयता किन बातों में निहित है, जिसमें मनुष्य गिर गया ?
उत्तर: जिस अवस्था में मनुष्य गिरा, उस अवस्था की पापमयता आदम के प्रथम पाप के दोष (रोमियों 5:19), मूल धार्मिकता की कमी (रोमियों 3:10), सम्पूर्ण स्वभाव की भ्रष्टता, जिसे सामान्य रूप से मूल पाप कहा जाता है (इफिसियों 2:1; भजन सहिंता 51:5) और वो सारे पाप जो इसमें से निकलते हैं (मत्ती 15:19), में निहित है।

साक्षी आयतें:
क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। (रोमियों 5:19)

जैसा लिखा है :
“कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। (रोमियों 3:10)

उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे (इफिसियों 2:1)

देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ,
और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ
में पड़ा। ( भजन सहिंता 51:5)

क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है। (मत्ती 15:19)

व्याख्या:

इस प्रश्न को सरल भाषा में पूछें तो कुछ इस तरह से कहा जा सकता है : मनुष्य के पाप के परिणाम किन-किन बातों में देखे जा सकते हैं? मनुष्य के पाप के परिणाम निम्न बातों में देखे जा सकते हैं :

  • आदम के प्रथम पाप का दोष: आदम स्वयं और उसमें साड़ी जाति पापी हो गई।
  • मूल धार्मिकता की कमी: आदम के सभी बच्चे परमेश्वर की सच्ची धार्मिकता से विहीन है।
  • सम्पूर्ण स्वभाव की भ्रष्टता : आदम के सभी बच्चे पूरी तरह भ्रष्ट है; उनमे से कुछ भी अच्छा नहीं निकल सकता है।
  • वो सारे पाप जो मनुष्य की सम्पूर्ण भ्रष्टता से निकलते हैं: अंदर जड़ में पापी होने के कारण मनुष्य में से दिन रात सिर्फ पाप ही निकलते हैं।

आदम सम्पूर्ण मनुष्य जाति का प्रतिनिधित्वकर्ता था। जब उसने पाप किया तो वो तो दोषी बना ही, उससे पैदा होने वाले सारे मनुष्य भी दोषी बन गए। सारे मनुष्य जन्मजात पापी और पाप के परिणामों के अंतर्गत ही पैदा होते हैं। इसीलिए बच्चा अपने आप ईर्ष्या रखने, झूंठ बोलने और धोखा देने का अभ्यास करने लग जाता है। उसे ये बातें किसी स्कूल में सिखाने की जरुरत नहीं। ये उसके स्वाभाव में हैं। उसके आसपास का वातावरण उसे पापी नहीं बनाता। वो तो वो जन्मजात ही है। उसके आसपास का वातावरण तो बस उस पाप को बाहर लाने में मदद करता है। मनुष्य की आदम से प्राप्त यह पापमयता इतनी भयंकर है कि वो सम्पूर्ण रूप से भ्रष्ट है। उसके अस्तित्व का ऐसा कोई भाग नहीं है जो पाप से मुक्त हो। मनुष्य के अंदर से सिर्फ पाप ही निकलता है। बाइबल उसे पाप में मरा हुआ बताती है। मनुष्य के पूरी तरह भ्रष्ट या पापों में मरे हुए होने का अर्थ है कि वह परमेश्वर को नहीं चुन सकता, ना ही वह परमेश्वर के पास आना चाहता है. उसके महान से महान कार्य परमेश्वर की नज़रों में पाप है क्योंकि जो विश्वास से नहीं और परमेश्वर की महिमा के लिए नहीं, वो सब पाप है. मनुष्य जन्म से ही पाप में मरा हुआ है और वो अपने को नहीं बदल सकता; ना ही बदलना चाहता है. सिर्फ परमेश्वर ही है जो उसको अंदर से बदल कर अपने पास बुला सकता है।

क्योंकि जैसा एक मनुष्य के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे। (रोमियों 5:19)

जैसा लिखा है :
“कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। (रोमियों 3:10)

उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे (इफिसियों 2:1)

देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ,
और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ
में पड़ा। ( भजन सहिंता 51:5)

अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं। (अय्यूब 14:4)

दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बोलते हुए भटक जाते हैं। (भजन 58:3)

क्या हबशी अपना चमड़ा, वा चीता अपने धब्बे बदल सकता है? यदि वे ऐसा कर सकें, तो तू भी, जो बुराई करना सीख गई है, भलाई कर सकेगी। (यिर्मयाह 13:23)

मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? (यिर्मयाह 17:9)

क्योंकि बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलती है। (मत्ती 15:19)

मैं तुम को नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा, और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूँगा। मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूँगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे। (यहेजकेल 36:26-27)

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