Reformed baptist church in jaipur

क्या परमेश्वर हमें सहने से बाहर दुःख नहीं देगा?

जब किसी विश्वासी पर कोई विपत्ति या दुख आता है, तो साथी विश्वासी लोग कहने लग जाते हैं, “परमेश्वर आपकी सहनशक्ति से अधिक नहीं देगा।” “ही विल नॉट गिव यू मोर दैन यू कैन हैंडल।”  

यह बहुत ही लोकप्रिय तरीका है दुःख या विपत्तिग्रस्त व्यक्ति को सांत्वना देने का। लेकिन सम्पूर्ण इतिहास गवाह है कि कईं मसीहियों ने सहन-शक्ति से अधिक दुःख उठाया है। आप पाठकों में से भी कुछ इस लेख को पढ़ते समय असहनीय दर्द से गुजर रहे होंगे।  

न तो पवित्र शास्त्र ऐसा सिखाता है, ना ही अनुभव में यह बात सत्य रही है कि परमेश्वर सहने से अधिक नहीं देगा। फिर क्यों कर लोग ऐसा कहते हैं? 

वही, छिछले पास्टर्स की आम समस्या, उन्होंने अपने लोगों को एक आयत का गलत मतलब निकालकर बताया है। कौनसी आयत। आइये पढ़ते हैं, 

तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्‍वर सच्‍चा है और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको। (1 कुरिन्थियों 10:13) 

लोग इसी आयत को लेके कहते हैं कि परमेश्वर हमारी सहन शक्ति से अधिक दुःख नहीं देता।  लेकिन पौलुस तो हमें बताता है कि उसको उसकी सहन शक्ति से अधिक दुःख मिला: 

हे भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो जो आसिया में हम पर पड़ा; हम ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ्य से बाहर था, यहाँ तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। (2 कुरिन्थियों 1:8) 

2 कुरिन्थियों 1:8 में पौलुस हमे स्पष्ट रूप से बताता है उसे और उसके साथियों को उनके सामर्थ्य से बढ़कर दुःख मिला था। आइये इसका एक बेहतर अनुवाद पढ़ें, जो हमारे लिए अत्यंत सहायक होगा।  

भाइयो और बहिनो! हम आप लोगों से यह नहीं छिपाना चाहते कि आसिया में जो कष्‍ट हमें सहना पड़ा, वह बहुत ही भारी और हमारी सहनशक्‍ति के परे था-यहां तक कि हमने जीवित रहने की आशा भी छोड़ दी थी।  (HINCLBSI)

यह अनुवाद अत्यंत स्पष्ट है। पौलुस और उसके साथियों का कष्ट उनकी सहन शक्ति से परे था। यहां तक कि उन्होंने जीवित रहने की आशा भी छोड़ दी थी। तथ्य तो यह है कि वे इतने कष्टों में थे कि उन्हें मृत्यु जीवन से बेहतर लगने लगी थी।  

तो यह तो तय हो गया कि परमेश्वर सहने से अधिक दे सकता है।  फिर 1 कुरिन्थियों 10:13 का क्या अर्थ है।  आइये इस आयत को फिर से पढ़ें : 

तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है। परमेश्‍वर सच्‍चा है और वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन् परीक्षा के साथ निकास भी करेगा कि तुम सह सको। (1 कुरिन्थियों 10:13)

यहां परीक्षा का अर्थ दुःख या संकट नहीं है। यहां “परीक्षा” शब्द प्रलोभन के लिए इस्तेमाल किया गया है।  आइये इस आयत का भी एक बेहतर अनुवाद पढ़ें: 

‘आप को अब तक ऐसा प्रलोभन नहीं दिया गया है, जो मनुष्‍य की शक्‍ति से परे हो। परमेश्‍वर सत्‍यप्रतिज्ञ है। वह आप को ऐसे प्रलोभन में पड़ने नहीं देगा, जो आपकी शक्‍ति से परे हो। वह प्रलोभन के समय आप को उससे निकलने का मार्ग दिखायेगा, जिससे आप उसे सहन कर सकें।’   (HINCLBSI)

तो यह आयत यह वादा नहीं करती कि परमेश्वर सहने से अधिक दुख-दर्द नहीं देगा। यह आयत यह वादा करती है कि परमेश्वर हमें ऐसे प्रलोभन में नहीं पड़ने देगा जो मसीही मनुष्य की सहन-शक्ति से बाहर हो और जिसका वह प्रतिरोध न कर सके, क्योंकि उसे पाप पर विजय पाने के सम्पूर्ण संसाधन मसीह में उपलब्ध करवा दिए गए हैं। 

 

गलत अर्थ निकालने के परिणाम:  

i) पाप के प्रलोभन पर विजय देने वाली इतनी सामर्थी आयत का क्या कर दिया हमने! यह आयत हमें यह सिखाती है कि हमें ऐसा कोई प्रलोभन नहीं मिलता जो मनुष्यो के लिए आम न हो।  हमें ऐसा कोई प्रलोभन नहीं मिलता जिसका हम परमेश्वर के सामर्थ्य के द्वारा प्रतिरोध नहीं कर सकते । परमेश्वर सच्चा है।  वह हमें ऐसे प्रलोभन में पड़ने नहीं देगा, जो हमारी शक्‍ति से परे हो। वह प्रलोभन के समय हमें उससे निकलने का मार्ग दिखायेगा, जिससे हम उसे सहन कर सकें। 

शैतान यही तो झूठ बोलता है, “देख, कर ले यह सीक्रेट पाप, आज तू नहीं कर पायेगा प्रतिरोध। नहीं है तेरे बस का, कर दे क्लिक, कर, कर, कर, कर।”  यदि किसी को इस आयत का सही अर्थ मालूम हो तो वह कह सकता है, “शैतान झूठा है।  मैं उस पर  विश्वास नहीं करूँगा। मुझे ऐसा प्रलोभन मिल ही नहीं सकता जिसका मैं प्रतिरोध नहीं कर सकूँ। मैं तो प्रतिरोध करूँगा।  है प्रभु, तूने कहा तू मुझे निकालेगा इस खतरनाक प्रलोभन से। तू सच्चा है। मुझे विजय दे।” इस आयत के द्वारा इस व्यक्ति में ऐसी सामर्थ आ जाएगी कि, वह कहेगा ” येशु मसीह की जय, शट डाउन।” यह व्यक्ति अपने कंप्यूटर को बंद करके विजय के साथ क्रूस पर घमंड करके इतरा के सोने चले जाएगा।

शैतान ने लोगों से इस आयत का मतलब छुपा कर उन्हें इसकी सामर्थ और इससे मिलने वाले छुटकारे से वंचित कर दिया। इसीलिए हमें बाइबल का सही ज्ञान आवश्यक है।  

ii) जो असहनीय दुख से गुजर रहा है, उसे यह कहना की परमेश्वर सहने से अधिक दुःख में नहीं पड़ने देगा, उसको प्रोत्साहित नहीं करता।  यह वाक्य उसे कन्फ्यूज़ करता है, विचलित करता है, परमेश्वर से उसके भरोसे को डगमगा भी सकता है। अपनी निराशा के क्षणों में वह सोचेगा परमेश्वर ने तो कहा है वह सहने से अधिक नहीं देगा, लेकिन मेरे लिए तो यह कैंसर, यह दर्द, यह दुःख असहनीय है। किसी व्यक्ति के बच्चे की एक्सीडेंट, बीमारी या हत्या के द्वारा मृत्यु हो जाए, तो क्या यह सहनीय होगा? कदापि नहीं। यह वाक्य ऐसे व्यक्ति और उसके विश्वास के लिए हानिकारक है। 

iii) किसी से यह कहना की परमेश्वर सहने से अधिक दुःख में नहीं पड़ने देगा, उस मनुष्य का ध्यान परमेश्वर और उसके अनुग्रह से हटा कर उसके अपने सेल्फ पर लगाना है। यह व्यक्ति अपने असहनीय दुःख के कुछ ठीक ठीक क्षणों में सोचेगा, “अरे, परमेश्वर मुझे मेरे सहने से अधिक नहीं देगा। मुझे थोड़ा और मजबूत करना होगा स्वयं को। मैं सहन कर सकता हूँ। मैं लड़ सकता हूँ इस दर्द से।” थोड़े समय बाद यह व्यक्ति फिर निराश होगा और फिर नया विज़िटर आकर उसे यही कह कर जाएगा या कोई छिछला पास्टर या काउंसलर उसे यही कह कर जाएगा और वो फिर से अपने आप को मोटीवेट करेगा, “मैं यह कर सकता हूँ। परमेश्वर ने यह दुःख देने से पहले मेरी सहन शक्ति नाप ली थी।  यह उतना ही है जितना मैं सह सकता हूँ।” और इस तरह यह छिछले पास्टर और गलत शिक्षा का शिकार होकर बस “मैं, मैं, मैं, मैं, मैं, मैं” ही करता रह जाएगा।  जो कि सरासर बाइबल के विपरीत है।  

 

तो फिर कैसे दें दुखी व्यक्ति को असहनीय दुःख सहने का प्रोत्साहन? 

वैसे ही जैसे बाइबल देती है, यीशु मसीह देता है, पौलुस देता है। आइए,  हम देखें पौलुस ने अपने आप को और दूसरों को कैसे प्रोत्साहित किया? 

i) मैं दीन होना भी जानता हूँ और बढ़ना भी जानता हूँ; हर एक बात और सब दशाओं में मैं ने तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना–घटना सीखा है। जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ। (फिलिप्पियों 4:12-13)

ध्यान दीजिए, यहाँ पौलसु का ध्यान अपनी सहने की क्षमता पर नहीं है। वह तो परमेश्वर के सामर्थ्य के द्वारा हर परिस्थिति में परमेश्वर में संतुष्ट  रहेगा और विजय होगा।  

ii) पर उसने मुझ से कहा, “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है।” इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं में, और निन्दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में प्रसन्न हूँ; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ, तभी बलवन्त होता हूँ। (2 कुरिन्थियों 12:9-10)

ध्यान दें, पौलुस यहां अपनी सहने की क्षमता पर नहीं घमंड कर रहा है, परन्तु परमेश्वर पर घमंड कर रहा है, जिसकी सामर्थ उसकी निर्बलता में प्रकट होती है।  ध्यान रहे, परमेश्वर हमें मजबूत नहीं बनाता कि हम स्वयं में घमंड करें।  बल्कि इसके विपरीत वह हमे निर्बल और अधिक निर्बल बनाता है, जब तक हम उसकी सामर्थ पर निर्भर होना न सीख जाएं।  

 

निष्कर्ष: 

तो भाइयों और बहनों, सच्ची और झूठी शिक्षा का यह बहुत ही अच्छा मानक है: 

हर वह शिक्षा जो प्राणी की ओर ध्यान खींचे और उसे ऊंचा उठाए, वह झूठी है। और हर वह शिक्षा जो प्राणी को छोटा करे और परमेश्वर को बड़ा दिखाए, वह सच्ची है।   

 

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