कुछ झूंटे या भ्रमित शिक्षक निम्नांकित आयत का इस्तेमाल करके कहते हैं की हम उद्धार खो सकते हैं:
जो विजयी होगा वह इसी प्रकार श्वेत वस्त्र धारण करेगा। मैं जीवन की पुस्तक से उसका नाम नहीं मिटाऊँगा, बल्कि मैं तो उसके नाम को अपने परम पिता और उसके स्वर्गदूतों के सम्मुख मान्यता प्रदान करूँगा। (प्रकाशितवाक्य 3:5)
ये लोग बाइबल की हज़ारों आयतें नहीं देख सकते जो की बाइबल के हर पृष्ठ पर चीख चीख कर कह रही है की उद्धार यहोवा की और से है और यह खोया नहीं जा सकता. (उन में से कुछ मुख्य आयतों के लिए http://logosinhindi.com/perseverance-of-saints/ क्लिक कीजिये.) परन्तु ये झूंठे शिक्षक अपने ही विनाश के लिए बाइबल की आयतों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं. (2 पतरस 3:16) इन लोगों को प्रकाशितवाक्य 3:5 तो दिखता है पर प्रकाशितवाक्य 13:8 और 17:8 नहीं दिखता. आइये हम इन आयतों को पढ़ते हैं और वचन की व्याख्या वचन के द्वारा करते हैं:
और पृथ्वी के वे सब रहने वाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे।( प्रकाशितवाक्य 13:8)
जो पशु तू ने देखा है, यह पहिले तो था, पर अब नहीं है, और अथाह कुंड से निकल कर विनाश में पड़ेगा, और पृथ्वी के रहने वाले जिन के नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, इस पशु की यह दशा देखकर, कि पहिले था, और अब नहीं; और फिर आ जाएगा, अचंभा करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 17:8)
प्रकाशितवाक्य 13:8 और 17:8 के अनुसार पशु और शैतान के सामने कौन झुकेगा? जी हाँ, वो जिनके नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे गए.
मैं फिर से दोहराता हूँ प्रकाशितवाक्य 13 : 8 और 14:8 चीख–चीख कर कह रहें हैं की जिनके नाम जगत की उत्पत्ति के समय से जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे गए, वे ही पशु और शैतान के सामने झुकेंगे, बाकी लोग विजय होंगे और उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाया जायेगा और उनका नाम जीवन की पुस्तक में से कभी नहीं काटा जायेगा (प्रकाशितवाक्य 3:5).
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सवाल यह नहीं है कि किसने शाश्वतकालीन जीवन को प्राप्त किया है सवाल यह है कि क्या अनन्त काल तक भोग विलास के पीछे ही भागते रहना है, क्या भौतिक संसार कम पड़ गया है? इस भौतिक संसार में दुख ही दुःख हैं पीड़ा है। हर क्षणिक सुख प्राप्त करने हेतु भी बहुत दुख झेलना पड़ता है, इसलिए सुख की व्यर्थता का बोध नहीं होता केवल आनंद का भ्रम होता है। हर सुख की भूख बाद में दुख का कारण बनती है। दुःख से भागने का ही नाम सुख है, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
ऐसे जीवन का भी क्या प्रयोजन है, की न जीवन का मोह रह जाए और न मरने का ही, क्योंकि मरने के बाद भी तो शाश्वतकालीन स्वर्ग-नरक की झंझटों मैं पड़ना है,
दुःख न हो तो सुख का कोई मूल्य नहीं, तो तुम स्वर्ग में करोगे भी क्या, जहां शाश्वतकालीन केवल सुख ही सुख है
इससे अच्छा तो अस्तित्वहीन होना है जब खुदका अस्तित्व ही न होगा तो, न स्वर्ग का लालच होगा और न नरक का डर होगा, न दुःख की पीड़ा होगी न सुख का मोह होगा न कोई चेतना होगी।
यह बात मेरे समझ से परे है कि ऐसी सृष्टि की रचना में ईश्वर का कौन सा कारण छुपा हुआ है?