Reformed baptist church in jaipur

बैपटिस्ट विश्वास अंगीकार अध्याय 11 – धर्मिकरण

पैराग्राफ़ -1

(i) जिन्हें परमेश्वर प्रभावशाली रूप से बुलाता है, वह उन्हें सेंतमेंत/मुफ्त में धर्मी भी ठहराता है। (ii) वह ऐसा उन में धार्मिकता डालने के द्वारा नहीं करता, परन्तु उनके पापों को क्षमा करने और उन्हें धर्मी मानने और धर्मी के रूप में स्वीकार करने के द्वारा करता है। (iii) वह यह केवल मसीह के कारण करता है, न कि उन में उत्पन्न या उनके द्वारा किए गए किसी काम के कारण। (iv) वह स्वयं विश्वास, विश्वास करने के कार्य, या किसी अन्य सुसमाचार की आज्ञाकारिता को उनकी धार्मिकता नहीं मानता है। इसके बजाय वह पूरी व्यवस्था के प्रति मसीह की सक्रिय आज्ञाकारिता और उसकी मृत्यु में निष्क्रिय आज्ञाकारिता को (उनके) विश्वास के द्वारा (उन पर) उनकी संपूर्ण और एकमात्र धार्मिकता के रूप में आरोपित करता है। (v) यह विश्वास स्वयं में से उत्पन्न नहीं होता है; यह परमेश्वर का दान है।

(i) रोमियों 3:24; 8:30

(ii) रोमियों 4:5-8; इफिसियों 1:7

(iii) 1 कुरिन्थियों 1:30, 31; रोमियों 5:17-19

(iv) फिलिप्पियों 3:8,9; इफिसियों 2:8-10

(v) यूहन्ना 1:12; रोमियों 5:17

 

पैराग्राफ़ -2

(i) मसीह और उसकी धार्मिकता को ग्रहण करने वाला और उस पर निर्भर रहने वाला विश्वास ही धर्मिकरण का एकमात्र साधन है। (ii) यह एक मृत विश्वास नहीं है, बल्कि प्रेम के द्वारा कार्य करता है।

(i) रोमियों 3:28

(ii) गलातियों 5:6; याकूब 2:17, 22, 26

 

पैराग्राफ़ -3

(i)  मसीह ने अपनी आज्ञाकारिता और मृत्यु के द्वारा उन सब का कर्ज चुका दिया था, जो धर्मी ठहराए जाते हैं। उसने उनके स्थान पर उस दण्ड को सहा, जिसके वे योग्य थे। क्रूस पर अपना लहू बहाकर अपना बलिदान करने के द्वारा उसने वैद्यानिक रूप से/कानूनन, वास्तव में, और  पूरी तरह से परमेश्वर के न्याय को उनकी ओर से संतुष्ट किया था। (ii) तौभी उनका धर्मिकरण पूरी तरह से मुफ्त अनुग्रह पर आधारित है, क्योंकि वह उनके लिए पिता द्वारा दिया गया था और उसकी आज्ञाकारिता और (परमेश्वर के न्याय के) सन्तुष्टिकरण को उनके स्थान पर स्वीकार किया गया था। ये बातें सेंतमेंत (मुफ्त में) की गईं, न कि उन में किसी बात के कारण,  (iii) ताकि खरा न्याय और परमेश्वर का अनुग्रह दोनों पापियों के धर्मिकरण में महिमा पाएं।

(i) इब्रानियों 10:14; 1 पतरस 1:18, 19; यशायाह 53:5, 6

(ii) रोमियों 8:32; 2 कुरिन्थियों 5:21

(iii) रोमियों 3:26; इफिसियों 1:6,7; 2:7

 

पैराग्राफ़ -4

(i) परमेश्वर ने अनन्तकाल से सब चुने हुओं का धर्मिकरण निश्चित किया, (ii) और नियत समय पर  मसीह उनके पापों के लिये मरा और उनके धर्मिकरण के लिए जी उठा। (iii) फिर भी वे व्यक्तिगत् रूप से तब तक धर्मी नहीं ठहराए जाते हैं, जब तक कि पवित्र आत्मा वास्तव में उचित समय पर उन पर मसीह को लागू न करे।

(i) गलातियों 3:8; 1 पतरस 1:2; 1 तीमुथियुस 2:6

(ii) रोमियों 4:25

(iii) कुलुस्सियों 1:21, 22; तीतुस 3:4-7

 

पैराग्राफ़ -5

(i) जो धर्मी ठहरते हैं, उनके पाप परमेश्वर निरन्तर क्षमा करता है। (ii) यद्यपि वे धर्मी ठहराए जाने की अवस्था से कभी नहीं गिर सकते, (iii) वे अपने पापों के कारण परमेश्वर की पितृवत् अप्रसन्नता (पिता का बच्चे पर क्रोध) के अधीन हो सकते हैं। (iv) उस स्थिति में आमतौर पर उसके चेहरे का प्रकाश तब तक उनको नहीं मिलता है, जब तक वे अपने आप को दीन न कर लें, अपने पापों का अंगीकार न कर लें, क्षमा की याचना न कर लें और अपने विश्वास और पश्‍चाताप का नवीनीकरण न कर लें।

(i) मत्ती 6:12; 1 यूहन्ना 1:7, 9

(ii)  यूहन्ना 10:28

(iii) भजन 89:31–33

(iv) भजन 32:5; भजन संहिता 51; मत्ती 26:75

 

पैराग्राफ़ -6

(i) इसकी संपूर्णता में, पुराने नियम के विश्वासियों का धर्मिकरण बिल्कुल वैसे ही होता था, जैसे कि नए नियम के विश्वासियों का होता है।

(i) गलातियों 3:9; रोमियों 4:22-24

 

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