- अन्य भाषाएं क्या थी?
- अन्य भाषाओं का उद्देश्य क्या था और क्या आज भी अन्य भाषाओँ का वरदान है ?
- लेकिन 1 कुरिन्थियों 14:2-4 का क्या करोगे?
अन्य भाषाएं क्या थी?
अन्य भाषाएं विदेशी भाषाएं थी जो लोग बिना सीखे पवित्र आत्मा से वरदान पा कर बोलने लगते थे। सबसे पहले यह प्रेरितों 2 में देखी गई।
वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे। आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रह रहे थे। जब यह शब्द हुआ तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता था कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे, “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं? तो फिर क्यों हम में से हर एक अपनी अपनी जन्म–भूमि की भाषा सुनता है? हम जो पारथी और मेदी और एलामी और मेसोपोटामिया और यहूदिया और कप्पदूकिया और पुन्तुस और आसिया, और फ्रूगिया और पंफूलिया और मिस्र और लीबिया देश जो कुरेने के आस पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी, अर्थात् यहूदी और यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं, परन्तु अपनी–अपनी भाषा में उनसे परमेश्वर के बड़े–बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।” और वे सब चकित हुए और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या हो रहा है?” (प्रेरितों 2:4-12)
यहाँ हम दो बातों पर ध्यान देंगे। पहली, आयत 4 कहती है की अन्य भाषाएं बोलने की सामर्थ पवित्र आत्मा ने दी। यह पवित्र आत्मा का एक वरदान था, ये भाषाएं किसी लैंग्वेज स्कूल में जाकर या किसी सभा में किसी मनुष्य से नक़ल करके या मनोवैज्ञानिक रूप से भ्रमित होकर नहीं सीखी गई थी। दूसरी, आयत 6 से 12 स्पष्ट रूप से बताती है कि ये विदेशी भाषाएं थी, जो विश्वासी अचानक आत्मा से वरदान पा कर बोलने लगे थे। विदेशों में जन्मे और पले-बड़े यहूदी लोग और विदेशों से यहूदी धर्म को ग्रहण करने वाले लोग वहां थे और वे सब अचानक से अपनी अपनी जन्म-भूमि की भाषा सुन रहे थे।
इसके बाद अन्य भाषाएं प्रेरितों 10 में अन्यजातीय कुर्नीलियस के घर में सुनने को मिलती हैं।
और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंडेला गया है। क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति भाँति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। (प्रेरितों 10:45-46)
आयत 46 के अनुसार ये लोग भी भाँति भाँति की या विदेशी भाषाएं बोल रहे थे। यहूदी विश्वासियों ने देखा कि यह वैसा ही है, जैसा उनके साथ हुआ था और अन्यजातीय विश्वासियों को भी वैसा ही वरदान मिला जैसा उन्हें मिला था, अर्थात बिना सीखे विदेशी भाषाएँ बोलने का।
इसके बाद हम प्रेरितों 19 में अन्य भाषाएं सुनते हैं:
‘जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो पवित्र आत्मा उन पर उतरा, और वे भिन्न–भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे। (प्रेरितों 19:6)
यहाँ भी हम देखते हैं कि इफिसुस में ये विश्वासी भिन्न-भिन्न भाषाएँ अर्थात मानवीय विदेशी भाषाएं बोल रहे थे। ये कोई स्वर्गीय भाषाएं नहीं थी। निश्चित है स्वर्ग में जो भी भाषा होगी वो एक ही होगी, वहां भाषाएँ नहीं होंगी। भाषाओं की विविधता बाबेल के गुम्बद के समय मनुष्य के परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह के कारण आई थी। 1 कुरिन्थियों 13:1 हमें यह नहीं सिखाता कि स्वर्ग में विविध प्रकार की भाषाएँ हैं । 1 कुरिन्थियों 13:1 एक काल्पनिक शर्तिया वाक्य (Hypothetical Conditional Sentence) है, जैसे मैं पक्षी होता तो उड़ जाता। लेकिन यह एक काल्पनिक शर्तिया वाक्य है जो यदि या अगर से आरम्भ होता है। तथ्य यह है कि मेरे पंख नहीं है और स्वर्ग में विविध भाषाएँ नहीं हैं। इसके अलावा 1 कुरिन्थियों 13:8 कहता है कि अन्य भाषाओँ का वरदान बंद हो जाएगा। यदि अन्य भाषाएं स्वर्गीय भाषाएँ हैं, तो वे सदा काल के लिए रहनी चाहिए।
अन्य भाषाओं का उद्देश्य क्या था और क्या आज भी अन्य भाषाओँ का वरदान है?
अन्य भाषाओँ का उद्देश्य यदि समझ आ जाए तो इस विषय में फैली बहुत सी भ्रांतियां दूर हो सकती हैं। इस बात को हम तीन बिंदुओं के अंतर्गत समझेंगे।
i) अन्य भाषाओं का वरदान द्वितीयक रूप से थोड़े समय के लिए पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का चिन्ह था।
हाँ, थोड़े समय के लिए ऐसा था। जब तक यहूदी और अन्यजातीय विश्वासी एक नहीं हो जाते, तब तक ऐसा होना था। प्रेरितों अध्याय 2:3-4 में पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने पर यहूदी विश्वासी अन्य भाषाएँ बोलने लगे।
और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं और उनमें से हर एक पर आ ठहरीं। वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे। (प्रेरितों अध्याय 2:3-4)
इसके बाद यहूदी विश्वासियों को इसलिए मालूम पड़ा कि अन्य जातियों को भी पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिला है, क्योंकि वे अन्य भाषाएं बोल रहे थे।
और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंडेला गया है। क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति भाँति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। इस पर पतरस ने कहा, “क्या कोई जल की रोक कर सकता है कि ये बपतिस्मा न पाएँ, जिन्होंने हमारे समान पवित्र आत्मा पाया है?” प्रेरितों 10:45-47
याद करें पहले तो पतरस अन्य जातियों के यहाँ आना नहीं चाहता था, लेकिन परमेश्वर ने उसे और कुर्नीलियस दोनों को दर्शन देकर पतरस को कुर्नीलियस के घर में भेजा। परमेश्वर पतरस को कह रहा था कि तुम दोनों को कलीसिया में एक होना है। पतरस की नजरों में इस बात पर परमेश्वर ने मुहर लगा दी जब उसने अन्यजातीय विश्वासियों को यहूदी विश्वासियों के ही सामान अन्य भाषाएं बोलने का वरदान दिया। पतरस तुरंत समझ गया कि इनको पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मिल चुका है ये मसीह की देह के सदस्य बन चुके हैं। इसीलिए आयत 47 में वह कह उठा कि जब इन्हें मसीह की अदृश्य सार्वभौमिक कलीसिया में डाला जा चुका है तो इन्हें पानी का बपतिस्मा लेकर दृश्य कलीसिया में सदस्यता लेने से कौन रोक सकता है।
परन्तु यह उद्देश्य सदा के लिए नहीं था, जैसा कि पेंटिकोस्टल मसीही समझते हैं। ये सिर्फ यहूदी और अन्यजातीय विश्वासियों को एक छत के नीचे लाने के लिए शुरू में हुआ था। 1 कुरिन्थियों 12:30 स्पष्ट करता है कि सब को अन्य भाषा का वरदान नहीं दिया जाता था। तो क्या उनको पवित्र आत्मा उनके अंदर रहने के लिए नहीं दिया गया था या उनका पवित्र आत्मा का बपतिस्मा नहीं हुआ था। निश्चित रूप से पवित्र आत्मा दिया गया था और निश्चित रूप से वे पवित्र आत्मा के बपतिस्मे के द्वारा मसीह की देह में डाल दिए गए थे।
‘परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं। ‘ रोमियों 8:9
क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो क्या यूनानी, क्या दास हो क्या स्वतंत्र, एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया (बेहतर अनुवाद: पाया) , और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया। 1 कुरिन्थियों 12:13
अब पवित्र आत्मा अन्य भाषाओँ का वरदान तो दे नहीं रहा, तो फिर पेंटिकोस्टल मसीही क्या कर रहे हैं। दुर्भाग्य कि बात है कि उन्होंने अपनी ही नई अन्य भाषा का अविष्कार कर लिया है, जिसके अंतर्गत वे लोगों को कुछ ध्वनियों को दुहराने को कहते हैं, जिससे वे भावातिरेक (भावनात्मक उत्साह या आनंद) का अनुभव करते हैं।
तो स्पष्ट हो चुका है कि अन्य भाषा पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का चिन्ह सिर्फ कुछ ही दिन के लिए था, जब तक कि यहूदी और अन्य जातीय दृश्य रूप से एक परिवार नहीं बन गए।
ii) अन्य भाषाओं का वरदान द्वितीयक रूप से थोड़े समय के लिए नए प्रकाशन देने वाला वरदान था।
जी हाँ, अन्य भाषाओं का वरदान द्वितीयक रूप से थोड़े समय के लिए नए प्रकाशन देने वाला वरदान था और इसलिए इसके साथ अनुवाद का वरदान भी आवश्यक था, ताकि दुसरे विश्वासियों कि भी आत्मिक उन्नति हो सके। लेकिन यह केवल द्वितीयक रूप से ऐसा था, जब तक कि इसका प्राथमिक और मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक के लिए। 1 कुरिन्थियों 13:10 कहता है कि जब सिद्ध आएगा तो अधूरा समाप्त हो जाएगा। सन्दर्भ के अनुसार जब सिद्ध आएगा अर्थात वचन पूरा हो जाएगा तो अधूरा अर्थात प्रकाशन के अधूरे साधन जैसे भविष्यवाणी, अन्य भाषाओँ और अलौकिक ज्ञान के वरदान समाप्त हो जाएंगे। इस पर हम किसी और लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे।
iii) अन्य भाषाएं प्राथमिक रूप से, मुख्य रूप से और अंतिम रूप से यहूदियों के विनाश का चिन्ह था।
हे भाइयो, तुम समझ में बालक न बनो : बुराई में तो बालक रहो, परन्तु समझ में सियाने बनो। व्यवस्था में लिखा है कि प्रभु कहता है, “मैं अपरिचित भाषा बोलनेवालों के द्वारा, और पराए मुख के द्वारा इन लोगों से बातें करूँगा तौभी वे मेरी न सुनेंगे।” इसलिये अन्य भाषाएँ विश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्वासियों के लिये चिह्न हैं; और भविष्यद्वाणी अविश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु विश्वासियों के लिये चिह्न हैं। 1 कुरिन्थियों 14:20-22
1 कुरिन्थियों 14:20 में प्राचीन पेंटिकोस्टल चर्च अर्थात कुरिन्थियों के चर्च में अन्यभाषाओँ के विषय में फैली झूटी शिक्षाओं को ठीक करते-करते जैसे पौलुस तंग हो गया है और कहता उठता है, “पाप में बच्चे रहो, समझ में नहीं।” तुम लोग पाप में तो बड़े हो और समझ में बच्चे। समझदार बनो और अन्य भाषाओँ के सही उद्देश्य को जान लो। व्यवस्था में अर्थात यशायाह 28:11-13 में लिखा है कि परमेश्वसर उनसे विदेशी भाषाओँ (अन्य भाषाओँ) में बात करेगा, तो भी वे उसकी न सुनेंगे और फिर उनका विनाश होगा। आयत 22 कहती है कि इसलिए अन्य भाषाएँ विश्वासियों के लिये नहीं, परन्तु अविश्वासियों (सन्दर्भ में यहूदी अविश्वासियों) के लिये चिह्न हैं।
पौलुस का कहना था कि अन्यभाषाएँ अंतिम रूप से न तो पवित्र आत्मा के आपके अंदर रहने के लिए आने का या पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का चिन्ह था न ही प्रकाशन का माध्यम। वे छोटे उद्देश्य ऊपर बताए गए तरीके से पूरे हुए और मुख्य या अंतिम उद्देश्य जो कि यहूदियों के विनाश का चिन्ह था वह 70 ईसा पश्चात् में पूरा हुआ। ध्यान रहे चिन्ह किसी गंतव्य तक पहुंचाने के लिए होता है और गंतव्य तक पहुंचाने के बाद समाप्त हो जाता है। जी हाँ, अन्य भाषा का वरदान 70 ईसा में यहूदियों के विनाश के साथ बंद हो गया।
लेकिन 1 कुरिन्थियों 14:2-4 का क्या करोगे?
कुछ ज्यादा श्याणे लोग बोलेंगे की हम 1 कुरिन्थियों 14:2-4 का क्या करेंगे। वही करेंगे जो हमेशा करते हैं। इन आयतों को इनके अध्याय और पुस्तक के सन्दर्भ में और सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र की रौशनी में देखेंगे और व्यख्याविज्ञान के नियमों का पालन करके सही अर्थ निकालेंगे। आइये इन आयतों को पढ़ें:
क्योंकि जो अन्य भाषा में बातें करता है वह मनुष्यों से नहीं परन्तु परमेश्वर से बातें करता है; इसलिये कि उसकी बातें कोई नहीं समझता, क्योंकि वह भेद की बातें आत्मा में होकर बोलता है। परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों से उन्नति और उपदेश और शान्ति की बातें कहता है। जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है; परन्तु जो भविष्यद्वाणी करता है, वह कलीसिया की उन्नति करता है। 1 कुरिन्थियों 14:2-4
ये ज्यादा श्याणे लोग कहते हैं कि दो तरह की अन्य भाषाएं होती हैं। एक विदेशी भाषा और एक स्वर्गीय भाषा। ये स्वर्गीय अन्य भाषा परमेश्वर से बातें करने के लिए है और स्वयं की उन्नति करने के लिए है।
आइये हम इन बिंदुओं पर गौर करें।
- पहली बात यहाँ पौलुस व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल कर रहा है। जैसे मैं किसी मूर्ख को कहूँ, “तुम तो महान व्यक्ति हो। ” तो यह व्यंग्यात्मक भाषा है जिसके अंतर्गत उस व्यक्ति को सुधारने की दृष्टि से उसका मजाक उड़ाया जाता है। साहित्य और कला में यह एक स्वीकृत विधा है। परमेश्वर स्वयं और पुराने नियम के भविष्यवक्ता स्वयं इस विधा का इस्तेमाल करते थे। यह मूर्ख को उसकी गलती महसूस करवाने का एक प्रभावशाली तरीका है।
- दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि इस अध्याय में पौलुस जब भी असली अन्य भाषाओँ कि बात करता है तो सामान्यतया बहुवचन का इस्तेमाल करता है और जब नकली अन्यभाषा की बात करता है तो एक वचन का। क्योंकि असली भाषाओँ के प्रकार होते हैं, लेकिन बकवास या निरर्थक ध्वनियों या शब्दों ल ल ल या ब ब ब या राबा राबा राबा के प्रकार नहीं होते।
- दूसरी आयत में जो लिखा है “जो अन्य भाषा में बातें करता है वह मनुष्यों से नहीं परन्तु परमेश्वर से बातें करता है” का बेहतर अनुवाद यह होगा, क्योंकि परमेश्वर शब्द के पहले आर्टिकल नहीं लगा है: क्योंकि जो अन्य भाषा में बातें करता है वह मनुष्यों से नहीं परन्तु एक ईश्वर या देवता से बातें करता है।
- प्रेरितों 17:13 में इसका अनुवाद एक ईश्वर के रूप में ही किया गया है। पौलुस का कहना है कि जो बकवास वाली अन्यभाषा बोलता है , वह एक झूठे ईश्वर या देवता से बात करता है। ईश्वर से बातें करने के लिए अनजानी रहस्यमय भाषा का इस्तेमाल सिर्फ सृष्टि-उपासक धर्मों में ही होता है।
- आयत 2 में जो लिखा है आत्मा में भेद कि बातें करता है, यहाँ मनुष्य के आत्मा या उसकी भावनाओं की बात चल रही है। ऐसी बकवास करते वक्त उसे अपने मन में और शरीर में बहुत उत्तेजना महसूस होती है या मजा आता है या रोना आता है, जिसके बाद उसे हल्का महसूस होता है। इन लोगों को ऐसा भी लगता है कि ये अपने शरीर से ऊपर उठ गए हैं या स्वर्ग जा के आ गए हैं। या फिर ये लोग बेहोश भी हो जाते हैं।
- आयत 4 कहती है कि जो अन्य भाषा में बातें करता है, वह अपनी ही उन्नति करता है;
ये कितनी गलत बात है। आपके पास तो अन्य भाषा का वरदान है; आपकी आत्मिक उन्नति हो रही है। मेरे पास तो नहीं है, मेरी नहीं हो रही है। कौन जिम्मेदार है मेरे आत्मिक पिछड़ेपन के लिए ? पवित्र आत्मा ?
भाइयों पौलुस के समान आप से कहता हूँ। पाप में बनो बच्चे, समझ में नहीं। यहाँ व्यंग्यात्मक भाषा बोली जा रही है, मजाक उड़ाया जा रहा है। पवित्र आत्मा कोई भी स्वार्थी वरदान नहीं देता। पत्रियां बीसियों बार हमसे कहती है कि आत्मा के वरदान सम्पूर्ण कलीसिया या देह की उन्नति के लिए हैं :
‘किन्तु सब के लाभ पहुँचाने के लिये हर एक को आत्मा का प्रकाश दिया जाता है। ‘ 1 कुरिन्थियों 12:7
इसलिये तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो। (1 कुरिन्थियों 14:12)
इसलिये हे भाइयो, क्या करना चाहिए? जब तुम इकट्ठे होते हो, तो हर एक के हृदय में भजन या उपदेश या अन्य भाषा या प्रकाश या अन्य भाषा का अर्थ बताना रहता है। सब कुछ आत्मिक उन्नति के लिये होना चाहिए। (1 कुरिन्थियों 14:26)
उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया, जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएँ और सेवा का काम किया जाए और मसीह की देह उन्नति पाए, (इफिसियों 4:11-12)
जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए। (1 पतरस 4:10)
इसलिये हम उन बातों में लगे रहें जिनसे मेलमिलाप और एक दूसरे का सुधार हो। (रोमियों 14:17)
इस कारण एक दूसरे को शान्ति दो और एक दूसरे की उन्नति का कारण बनो, जैसा कि तुम करते भी हो। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11)
तो बहुतायत से यह स्पष्ट है कि ये आयतें खुद की स्वार्थी उन्नति के लिए स्वर्गीय भाषा की बात नहीं कर रही हैं। फिर से, यदि अन्य भाषा परमेश्वर से बात करने की भाषा है तो 1 कुरिन्थियों 13:8 के अनुसार वे बंद क्यों हो जाएँगी ? तो ध्यान रहे अन्य भाषा न तो प्रार्थना करने कि न आराधना करने की भाषा है। अन्य भाषाएँ सिर्फ और सिर्फ विदेशी भाषाएँ थीं , जो कि 70 इसा पश्चात् में समाप्त हो गई।