हमारे भाई, जो वाचा ईश्वरविज्ञानी (covenant theologians) हैं, इस बात पर जोर देते हैं कि पुराने नियम में कलीसिया थी। वे पुराने नियम और नए नियम के बीच बहुत अधिक समानता देखते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि पुराने नियम में कोई कलीसिया नहीं थी। वहां इस्राएल था। पवित्र बाइबल हमेशा इस्राएल और कलीसिया के बीच अंतर करती है। पुराने नियम में कलीसिया का अस्तित्व अर्थ निकालने की सही विधि द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
एक तर्क जो मैं अक्सर हमारे भाइयों से सुनता हूँ वह यह है कि स्तिफनुस ने पुरानी वाचा की सभा के लिए “एक्लेसिया” शब्द का उपयोग किया था। बाइबल के अधिकांश अंग्रेजी संस्करण इसका अनुवाद मण्डली या सभा के रूप में करते हैं। अंग्रेजी में KJV और हिंदी में OVBSI ने इसका अनुवाद कलीसिया के रूप में किया है।
‘यह वही है, जिसने जंगल में कलीसिया के बीच उस स्वर्गदूत के साथ सीनै पहाड़ पर उससे बातें कीं और हमारे बापदादों के साथ था, उसी को जीवित वचन मिले कि हम तक पहुँचाए। (प्रेरितों 7:38)
लेकिन यह बहुत कमज़ोर, यहाँ तक कि अमान्य तर्क है। यह वास्तव में खतरनाक हो सकता है यदि हम समान शब्दों को देखें और निष्कर्ष निकालें कि वे एक ही चीज़ हैं। यीशु और शैतान दोनों को भोर का तारा और शेर कहा जाता है, जबकि वे दो विपरीत ध्रुव हैं। संदर्भ ही वह चीज़ है जो यह तय करता है कि कोई विशेष शब्द किसके लिए इस्तेमाल किया गया है। यदि पुराने नियम की सभा के लिए “एक्लेसिया” शब्द का उपयोग यह साबित करता है कि पुराने नियम में कलीसिया थी, तो उसी शब्द के उपयोग से यह साबित होना चाहिए कि मूर्तिपूजकों की सभाएँ भी कलीसिया हैं।
वहाँ कोई कुछ चिल्लाता था और कोई कुछ, क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही थी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि हम किस लिये इकट्ठे हुए हैं। (प्रेरितों 19:32)
यह कहकर उसने सभा को विदा किया। (प्रेरितों 19:41)
इन आयतों में सभा के लिए ग्रीक शब्द एक्लेसिया है। संदर्भ यह है कि पौलुस और उसके दोस्तों के सुसमाचार प्रचार के कारण इफिसियों के लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। क्या हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि इफिसुस के दंगाइयों की भीड़ कलीसिया थी?
आइए इस अध्याय की आयत 39 पर भी नजर डालें:
‘परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा। (प्रेरितों 19:39)
इस आयत में भी इफिसुस की न्यायिक सभा के लिए शब्द “एक्लेसिया” है। क्या हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि वह सभा कलीसिया थी? बिल्कुल नहीं। तो हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि स्तिफनुस द्वारा पुराने नियम की सभा के लिए “एक्लेसिया” शब्द के उपयोग का मतलब यह नहीं है कि पुराने नियम में कलीसिया थी। ऐसे कई अन्य बाइबल आधारित और व्याख्याविज्ञानीय तर्क हैं जो यह साबित करने के लिए दिए जा सकते हैं कि कलीसिया नए नियम की एक अद्वितीय वास्तविकता है, जो पुराने नियम में अज्ञात थी।
i) यीशु ने कहा कि वह भविष्य में इस चट्टान पर अपनी कलीसिया बनाएगा।
‘और मैं भी तुझ से कहता हूँ कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधोलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। (मत्ती 16:18)
यीशु ने यह नहीं कहा कि वह कलीसिया की और मंजिलें बनायेगा। उसने कहा कि वह भविष्य में अपनी कलीसिया की नीवं डालेगा और ऐसा तब हुआ जब प्रेरितों के काम 2 में पवित्र आत्मा आया।
यीशु का यह कथन कि वह भविष्य में कलीसिया की स्थापना या निर्माण करेगा, इस विवाद को हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहिए। लेकिन फिर भी, आइए और सबूत देखें।
ii) पुराने नियम में कलीसिया एक भेद/रहस्य था।
जिससे तुम पढ़कर जान सकते हो कि मैं मसीह का वह भेद कहाँ तक समझता हूँ। जो अन्य समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। (इफिसियों 3:4-7)
पुराने नियम के संत जानते थे कि इस्राएल के उद्धार और दाऊद के पुत्र के सिंहासन पर बैठने के बाद सभी अन्यजातीय राष्ट्रों का उद्धार होगा । लेकिन वे नहीं जानते थे कि पुराने नियम के समय और भविष्य की सहस्राब्दी अवधि (Millennium Period) के बीच यीशु मसीह की एक मध्यवर्ती (intermediate) देह होगी। इस देह में यहूदी और अन्यजातीय शामिल होंगे। मसीह की देह या कलीसिया में यहूदियों और अन्यजातियों का यह मिलन पुराने नियम में अज्ञात एक भेद/रहस्य था और नए नियम में इसका प्रकटीकरण हुआ है।
कुलुस्सियों 1:24-26 भी हमें यह बताता है कि कलीसिया पुराने नियम में अज्ञात एक रहस्य था, लेकिन नए नियम में इसका प्रकटीकरण हुआ है :
अब मैं उन दु:खों के कारण आनन्द करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी करता हूँ; जिसका मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा पूरा प्रचार करूँ। अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। (कुलुस्सियों 1:24-26)
iii) कलीसिया प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नींव पर निर्मित एक नया मनुष्य है।
पर अब मसीह यीशु में तुम जो पहले दूर थे, मसीह के लहू के द्वारा निकट हो गए हो। क्योंकि वही हमारा मेल है जिसने दोनों को एक कर लिया और अलग करनेवाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया, और अपने शरीर में बैर अर्थात् वह व्यवस्था जिसकी आज्ञाएँ विधियों की रीति पर थीं, मिटा दिया कि दोनों से अपने में एक नया मनुष्य उत्पन्न कर के मेल करा दे, और क्रूस पर बैर को नाश करके इसके द्वारा दोनों को एक देह बनाकर परमेश्वर से मिलाए। उसने आकर तुम्हें जो दूर थे और उन्हें जो निकट थे, दोनों को मेलमिलाप का सुसमाचार सुनाया। क्योंकि उसी के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पहुँच होती है। इसलिये तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर, जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु स्वयं ही है, बनाए गए हो। (इफिसियों 2:13-20)
यह अंश बहुतायत से स्पष्ट करता है कि कलीसिया एक नया मनुष्य है, जिसमें यहूदी और अन्यजाति शामिल हैं। यीशु ने अलगाव की दीवार को तोड़ दिया और यहूदी विश्वासियों और अन्यजातियों को अपने शरीर में एकजुट किया। उसने प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नींव पर एक शरीर, नया मनुष्य, नया घर, नया मंदिर बनाया, जिसकी आधारशिला (कोने का पत्थर) स्वयं मसीह यीशु था। अब, पुराने नियम में कोई प्रेरित और नए नियम के भविष्यवक्ता नहीं थे और मसीह पुराने नियम में अपने शरीर में शत्रुता की विभाजनकारी दीवार को तोड़ने के लिए नहीं आया था। छुटकारे के अपने मेलमिलाप के कार्य को पूरा करने के लिए मसीह का आना और अपने प्रेरितों और नए नियम के भविष्यवक्ताओं की सेवकाई कलीसिया की नींव के लिए आवश्यक है। यह बिना किसी संदेह के सिद्ध करता है कि पुराने नियम में कलीसिया का अस्तित्व नहीं था। कोई अभी भी कह सकता है कि इफिसियों 2:20 में वर्णित भविष्यवक्ता पुराने नियम के भविष्यवक्ता हैं, लेकिन संदर्भ और यहां तक कि शब्दों के मात्र क्रम को देखते हुए यह एक हास्यास्पद तर्क होगा। ये प्रेरित और भविष्यवक्ता हैं, न कि भविष्यवक्ता और प्रेरित। निम्नलिखित आयतें यह भी सिद्ध करती हैं कि पौलुस पुराने नियम के भविष्यवक्ताओं के बजाय नए नियम के भविष्यवक्ताओं के बारे में बात कर रहा है:
‘जो अन्य समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। (इफिसियों 3:5)
‘उसने कुछ को प्रेरित नियुक्त करके, और कुछ को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कुछ को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कुछ को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया, ‘ (इफिसियों 4:11)
iv) कलीसिया की शुरुआत के लिए पवित्र आत्मा का अद्वितीय आगमन आवश्यक था और जब तक यीशु नहीं जाता, तब तक आत्मा नहीं आ सकता था।
पर्व के अंतिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकार कर कहा, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए। जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी’।” उसने यह वचन पवित्र आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। (यूहन्ना 7:37-39)
उपरोक्त आयतें हमें बताती हैं कि विश्वासियों के हृदयों से जीवित जल की नदियाँ बहेंगी, जिसका अर्थ है कि पवित्र आत्मा, जीवन का सोता हमारे शरीर में निवास करने के लिए आएगा। लेकिन यह मसीह की महिमा में प्रवेश करने के बाद ही होगा। निम्नलिखित आयत हमें यह भी बताती है कि जब तक वह नहीं जाएगा, सहायक पवित्र आत्मा विश्वासियों में निवास करने के लिए एक अद्वितीय अर्थ में नहीं आएगा।
‘तौभी मैं तुम से सच कहता हूँ कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। ‘(यूहन्ना 16:7)
यीशु स्वयं बताते हैं कि पवित्र आत्मा पुरानी वाचा के संतों के साथ था, लेकिन वह नई वाचा के संतों के अंदर रहने के लिए आएगा।
मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है; तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा। (यूहन्ना 14:16-17)
आइए इस आयत पर भी गौर करें:
जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर का निवास–स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो। (इफिसियों 2:22)
पुराने नियम में परमेश्वर मंदिर में रहता था। कलीसिया की स्थापना के लिए विश्वासियों में व्यक्तिगत रूप से और कलीसिया में सामूहिक रूप से निवास करने के लिए पवित्र आत्मा परमेश्वर का आना आवश्यक है। इफिसियों 2:22 के अनुसार, विश्वासियों में पवित्र आत्मा के वास के बिना कलीसिया का निर्माण शुरू नहीं हो सकता है।
v) कलीसिया पवित्र आत्मा के बपतिस्मे के द्वारा अस्तित्व में आई।
क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो क्या यूनानी, क्या दास हो क्या स्वतंत्र, एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया। 1 (कुरिन्थियों 12:13)
इस आयत से यह स्पष्ट है कि यीशु मसीह की देह या कलीसिया का निर्माण पवित्र आत्मा के बपतिस्मा से हुआ था। पवित्र आत्मा के बपतिस्मे का उद्देश्य मसीह की देह या कलीसिया का निर्माण करना था। और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा मसीह के महिमाकरण के बाद हुआ। प्रेरितों के काम अध्याय 1 में वह शिष्यों को पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त होने तक यरूशलेम में रहने का आदेश देता है:
‘और उनसे मिलकर उन्हें आज्ञा दी, “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो। ‘ (प्रेरितों 1:4)
यह वादा की गई घटना प्रेरितों के कार्य अध्याय 2 में घटित हुई। कलीसिया की शुरुआत प्रेरितों के काम अध्याय 2 में हुई। पुराने नियम में कलीसिया का अस्तित्व नहीं था।
vi) यीशु मसीह परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठने पर कलीसिया के सिर बने।
ऊपर हमने इस बात को स्थापित किया है कि कलीसिया यीशु के स्वर्गारोहण के बाद और पवित्र आत्मा के भेजने पर ही अस्तित्व में आई। इस हैडिंग के अंतर्गत हम यह स्थापित करना चाहते हैं कि मसीह स्वर्ग में विराजमान होने के बाद कलीसिया (जो जल्द ही अस्तित्व में आने वाली थी) का सिर बना। वह क्रूस पर अपनी भावी दुल्हन को खरीदने और जी उठने के बाद और स्वर्ग में विराजमान होने पर सिर बना। निम्नलिखित आयतें इस बात को सिद्ध करती हैं:
जो उसने मसीह में किया कि उसको मरे हुओं में से जिलाकर स्वर्गीय स्थानों में अपनी दाहिनी ओर सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ्य, और प्रभुता के, और हर एक नाम के ऊपर, जो न केवल इस लोक में पर आनेवाले लोक में भी लिया जाएगा, बैठाया; और सब कुछ उसके पाँवों तले कर दिया; और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया, यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है। (इफिसियों 1:20-23)
‘वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है, और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। ‘ (कुलुस्सियों 1:18)
अब, यदि पुराने नियम में कलीसिया अस्तित्व में थी जैसा कि वाचा धर्मशास्त्री (covenant theologians) हमें बताते हैं, तो यह एक सिर रहित कलीसिया थी, जो निश्चित रूप से असंभव है। मसीह ने क्रूस पर कलीसिया की कीमत चुका दी , पुनरुत्थान के बाद और स्वर्ग में विराजमान होने पर सिर बना और प्रेरितों के काम अध्याय 2 में देह को जन्म दिया।
vii) सम्पूर्ण नए नियम में कलीसिया और इज़राइल के बीच अंतर किया गया है
बाइबल इस बात पर ज़ोर देती है कि इज़राइल और कलीसिया अलग-अलग हों। नए नियम में इजराइल शब्द का प्रयोग 73 बार किया गया है। इनमें से एक बार भी यह कलीसिया के लिए इस्तेमाल नहीं हुआ है। वाचा धर्मशास्त्रियों का दावा है कि कम से कम तीन आयतें कलीसिया को इज़राइल कहती हैं, लेकिन अगर हम सही संदर्भ और संपूर्ण पुस्तकों और सम्पूर्ण बाइबल के प्रकाश में देखें तो उनका अभिकथन गलत साबित होता है।नए यरूशलेम तक में कलीसिया और इज़राइल के बीच का भेद जारी है:
उसकी शहरपनाह बड़ी ऊँची थी, और उसके बारह फाटक और फाटकों पर बारह स्वर्गदूत थे; और उन फाटकों पर इस्राएलियों के बारह गोत्रों के नाम लिखे थे। पूर्व की ओर तीन फाटक, उत्तर की ओर तीन फाटक, दक्षिण की ओर तीन फाटक, और पश्चिम की ओर तीन फाटक थे। नगर की शहरपनाह की बारह नींवे थीं, और उन पर मेम्ने के बारह प्रेरितों के बारह नाम लिखे थे। (प्रकाशितवाक्य 21:12-14)
हालाँकि उनका मूल और सिर एक ही हैं, अर्थात् मसीह, वे दो अलग-अलग लोग हैं। धर्मशास्त्रीय फ्रेमवर्क उन्हें एक कर सकता है, लेकिन वचन का अर्थ निकालने की सही विधि उन्हें हमेशा अलग ही रखती है।
निष्कर्ष
यह उतनी ज्यादा स्पष्ट बात है। जो कोई भी इसके अलावा किसी अन्य चीज़ का दावा करता है वह परमेश्वर के वचन के आधार पर नहीं, बल्कि अपने स्वयं के धर्मशात्रीय पूर्वाग्रह (theological bias) के कारण ऐसा करता है। मेरी व्यक्तिगत तौर पर कोई प्राथमिकता नहीं है। मुझे उतनी ही ख़ुशी होगी यदि चर्च और इज़राइल एक चीज़ हो तो भी , लेकिन यह समनुरूप शाब्दिक, व्याकरणिक, ऐतिहासिक व्याख्या विज्ञान का उपयोग करते हुए उचित अर्थ निष्कर्षण (exegesis) के द्वारा आना चाहिए, न कि धर्मशास्त्रीय तंत्र (theological framework) या शाब्दिक व्याख्या विज्ञान (literal hermeneutic) के बजाय रूपक व्याख्या (allegorical hermeneutic) विज्ञान द्वारा। लेकिन यह एक द्वितीयक (secondary) विषय है; इसके लिए अपनी जान देने की आवश्यकता नहीं है। हम वाचा धर्मशास्त्रियों के साथ घनिष्ठ मित्र बन सकते हैं जैसे मैकआर्थर स्प्रोल के साथ थे।