29जब वह प्रार्थना कर ही रहा था, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया, और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा। 30और देखो, मूसा और एलिय्याह, ये दो पुरुष उसके साथ बातें कर रहे थे। 31ये महिमा सहित दिखाई दिए और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनेवाला था। (लूका 9:29-31)
धर्मशास्त्र में हम यीशु मसीह के अवमान/अपमान और सम्मान के विषय में पढ़ते हैं। सामान्यतया उसके निम्न दशा में जन्मने, दुःख उठाने, मरने और गाड़े जाने को मसीह का अवमान (Humiliation of Christ) कहा जाता है और उसके महिमावान पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण और न्याय करने के लिए उसके पुनरागमन को मसीह का सम्मान (Exaltation of Christ) कहा जाता है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि पुनरुत्थान के पहले मसीह को सिर्फ अपमान ही मिला। हम कई बार उसकी महिमा के दर्शन पाते हैं। उसके जन्मने पर स्वर्गदूतों के द्वारा उसकी स्तुति, बपतिस्मे पर पिता के द्वारा उसकी प्रशंसा और वर्त्तमान पाठ में उसका रूपांतरण और पिता के द्वारा फिर से उसका अनुमोदन– ये सभी उसके अनंत सम्मान और महिमा की अद्भुत झलकियां हैं। नृरूपेण अलंकार (anthropomorphism) का इस्तेमाल करें तो हम कह सकते हैं कि पिता पुत्र से इतना प्रेम करता है और उसका इतना सम्मान करता है कि मनुष्य जाति के उद्धार का स्वर्गीय मिशन पूरा होने से पहले ही वह बार बार उस पर सम्मान लुटाता है- जैसे उससे इसके बिना रहा नहीं जा रहा हो।
पर्वत पर यीशु मसीह का रूपांतरण उसकी स्वर्गीय महिमा का पूर्वदर्शन (preview) था। पर गौर करने की बात यह है कि मूसा, एलिय्याह और यीशु मसीह मनुष्य जाति के पापों की क्षमा के लिए उसके मरने की चर्चा कर रहे थे। हम इससे यह सीखते हैं कि महिमा से पहले दुःख उठाना अवश्य है। परमेश्वर के पुत्र ने हमारे पापों के लिए दुःख उठाया और फिर महिमा में प्रवेश किया। हम जो यीशु मसीह के जीवन, मरण और पुनरुत्थान पर विश्वास रखते हैं और मुफ्त में उद्धार पा चुके हैं, हमे भी पहले मसीह के पीछे चलने के लिए दुःख उठाने हैं और फिर ही हम स्वर्गीय महिमा में प्रवेश करेंगे (मत्ती 10:38; रोमियों 8:18)।