उसी को जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधमिर्यों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वा कर मार डाला। (प्रेरितों 2:23)
और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला। (प्रेरितों 3:15)
क्योंकि सचमुच तेरे सेवक यीशु के विरोध में, जिस तू ने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पीलातुस भी अन्य जातियों और इस्त्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए। कि जो कुछ तेरे हाथ (तेरी सामर्थ) और तेरे उद्देश्य ने पूर्वनिर्धारित किया था वही करें। (प्रेरितों 4:27-28)
आधुनिक मनुष्य परमेश्वर की सम्प्रभुता की शिक्षा का विरोध करते हैं और इस तरह के भावनात्मक तर्क देते हैं, ” मैं ऐसे ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकता, जिसने हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों को पूर्वनिर्धारित किया हो।” इसका प्रत्युत्तर यह है कि संसार का सबसे बड़ा पाप, अर्थात स्वयं यीशु मसीह की हत्या परमेश्वर ने पूर्व-निर्धारित की थी (प्रेरितों 4:27-28; प्रेरितों 2:23)। आर सी स्प्रोल से जब किसी ने पूछा कि निर्दोष लोग क्यों कष्ट सहते हैं। तो उनका उत्तर था मानव इतिहास में सिर्फ एक ही निर्दोष व्यक्ति है, जिसने दुःख उठाया है और वह है यीशु मसीह। उनका मतलब यह नहीं था कि संसार में अन्याय नहीं होता है, निश्चित रूप से होता है और परमेश्वर दूसरों को सताने वालो का न्याय भी करेगा, लेकिन अंतिम अर्थ में यदि किसी ने अन्याय सहा है तो वह है यीशु मसीह। जो किसी भी तरह से किसी बुराई को सहने के योग्य न था, उसके लिए परमेश्वर ने अन्याय, अत्याचार, अनादर और क्रूस की खौफनाक शापित मृत्यु का पूर्वनिर्धारण किया था। परन्तु परमेश्वर की सम्प्रभुता का सिद्धांत मनुष्य की जिम्मेदारी के सिद्धांत को नहीं नकारता। परमेश्वर न तो पाप का जनक है, ना ही पाप को स्वीकृति देने वाला (1 यूहन्ना 1:5)। वह किसी को पाप का प्रलोभन भी नहीं दे सकता ( याकूब 1:13)। मनुष्य स्वयं अपने पाप के लिए जिम्मेदार है (प्रेरितों 3:15) –इतना जिम्मेदार कि स्वयं यीशु मसीह की हमारे स्थान पर मृत्यु के बिना हमारे पाप क्षमा नहीं हो सकते थे। परमेश्वर पाप से इतनी नफरत करता है कि वह पापियों को अनंत काल के लिए नरक में दंड देगा और अपने चुने हुओं को छुड़ाने के लिए अपने ही पुत्र को क्रूस पर कुचल दिया (यशायाह 53:10)। तो आइए बुराई के लिए संप्रभु परमेश्वर पर संदेह करने और उस पर दोष लगाने के बजाय क्रूस के पास विश्वास और पश्चाताप के साथ आएं जहां न्याय और दया ने चुम्बन किया (भजन 85:10)।