Reformed baptist church in jaipur

बैपटिस्ट विश्वास अंगीकार अध्याय 17 – संतों का अध्यवसाय

पैराग्राफ़ -1

(i)  जिन्हें परमेश्वर ने अपने प्रिय पुत्र में स्वीकार किया है, उसके आत्मा के द्वारा प्रभावशाली रूप से बुलाया और पवित्र किया है, और अपने चुने हुओं का बहुमूल्य विश्वास दिया है, वे अनुग्रह की स्थिति से न तो पूरी तरह से और न ही हमेशा के लिए  गिर सकते हैं। वे निश्चित रूप से अंत तक अनुग्रह में बने रहेंगे और अनंत काल के लिए सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर के उपहार और बुलाहट अपरिवर्तनीय हैं। इसलिए वह अभी भी उनमें विश्वास, पश्चाताप, प्रेम, आनंद, आशा और आत्मा के वे सभी अनुग्रह उत्पन्न करता है और बढ़ाता है जो अमरत्व प्रदान करते  हैं। (ii) यद्यपि कई तूफ़ान और बाढ़ें उठती हैं और उन पर प्रहार करती हैं, फिर भी ये चीज़ें चुने हुए लोगों को उस नींव और चट्टान से कभी नहीं हिला पाएंगी जिस पर वे विश्वास के द्वारा टिके हुए हैं। परमेश्वर के प्रकाश और प्रेम की अनुभूति उनके अविश्वास और शैतान के प्रलोभनों के कारण कुछ समय के लिए धुंधली और दुरूह हो सकती है। (iii) फिर भी परमेश्वर अभी भी वैसा ही है; परमेश्वर की सामर्थ द्वारा  निश्चित रूप से उद्धार  के लिए उनकी रक्षा की जाएगी , जहां वे उनके लिए खरीदी गई संपत्ति का आनंद लेंगे। क्योंकि वे उसकी हथेलियों पर खुदे हुए हैं और उनके नाम जीवन की पुस्तक में अनन्त काल से लिखे हुए हैं।

(i) यूहन्ना 10:28, 29; फिलिप्पियों 1:6; 2 तीमुथियुस 2:19; 1 यूहन्ना 2:19

(ii) 2 भजन 89:31, 32; 1 कुरिन्थियों 11:32

(iii) मलाकी 3:6

 

पैराग्राफ़ -2

(i) संतों का यह अध्यवसाय उनकी अपनी स्वतंत्र इच्छा पर नहीं बल्कि चुनाव के विधान की अपरिवर्तनीयता पर निर्भर करता है, (ii) जो पिता परमेश्वर के स्वतंत्र और अपरिवर्तनीय प्रेम से प्रवाहित होता है। यह यीशु मसीह की योग्यता और मध्यस्थता की प्रभावकारिता और उसके साथ उनकी एकता, (iii) परमेश्वर की शपथ, (iv) उसके आत्मा के उनमे बने रहने, उनके अंदर परमेश्वर के बीज, (v)  और नई वाचा के स्वाभाव पर आधारित है। (vi) उनके अध्यवसाय की निश्चितता और अचूकता इन सभी बातों पर आधारित है।

 

(i) रोमियों 8:30; रोमियों 9:11, 16

(ii) रोमियों 5:9, 10; यूहन्ना 14:19

(iii) इब्रानियों 6:17, 18

(iv) 1 यूहन्ना 3:9

(v) यिर्मयाह 32:40

 

पैराग्राफ़ -3

(i) वे गंभीर पापों में पड़ सकते हैं और शैतान और संसार के प्रलोभन, उनमें शेष भ्रष्टता की ताकत और उनके संरक्षण के साधनों की उपेक्षा के कारण कुछ समय तक उनमें बने रह सकते हैं। (ii) ऐसा करने के द्वारा वे परमेश्वर की नाराजगी को अपने ऊपर लाते हैं और उसके पवित्र आत्मा को शोकित करते हैं; (iii) उनमे पाया जाने वाला अनुग्रह  और शान्ति भंग हो जाते हैं;  (iv) उनके ह्रदय कठोर हो जाते हैं और उनके विवेक घायल हो जाते है;  (v) वे दूसरों को दुःख पहुँचाते हैं और अपमानित करते हैं और खुद पर अस्थायी दंड लाते हैं।(vi)  फिर भी वे अपने पश्चाताप को नवीनीकृत करेंगे और अंत तक मसीह यीशु में विश्वास के माध्यम से सुरक्षित रहेंगे।

 

(i) मत्ती 26:70, 72, 74

 (ii) यशायाह 64:5, 9; इफिसियों 4:30

(iii) भजन 51:10, 12

(iv) भजन 32:3, 4

 (v) 2 शमूएल 12:14

(vi) लूका 22:32, 61, 62

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