Reformed baptist church in jaipur

बैपटिस्ट विश्वास अंगीकार अध्याय 16 – अच्छे कार्य

पैराग्राफ़ -1

(i)  केवल वे ही अच्छे कार्य हैं, जिनकी आज्ञा परमेश्वर ने अपने पवित्र वचन में दी है। (ii) जिन कार्यों का आधार यह नहीं है, वे लोगों द्वारा अंध-उत्साह में या अच्छे इरादों के दिखावे में किए जाते हैं और वास्तव में अच्छे नहीं हैं।

(i) मीका 6:8; इब्रानियों 13:21

 (ii) मत्ती 15:9; यशायाह 29:13

 

पैराग्राफ़ -2

(i)  परमेश्वर की आज्ञाओं के पालन में किए गए ये अच्छे कार्य सच्चे और जीवित विश्वास का फल और प्रमाण हैं। (ii)  अच्छे कार्यों के माध्यम से विश्वासी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं,  (iii) अपने आश्वासन को मजबूत करते हैं, (iv) अपने भाइयों और बहनों की आत्मिक उन्नति करते हैं, सुसमाचार में विश्वास की सुंदरता को दर्शाते हैं, (v) विरोधियों का मुंह बंद करते हैं, और परमेश्वर की महिमा करते हैं। (vi) विश्वासी परमेश्वर की कृतियाँ हैं, जो मसीह यीशु में अच्छे कार्यों के लिए सृजी गई हैं, (vii) ताकि वे पवित्रता की ओर ले जाने वाले फल उत्पन्न करें और उसका परिणाम अनन्त जीवन प्राप्त करें।

(i) याकूब 2:18, 22

(ii)  भजन 116:12, 13

 (iii) 1 यूहन्ना 2:3, 5; 2 पतरस 1:5-11

(iv) 6 मत्ती 5:16

(v)  1 तीमुथियुस 6:1; 1 पतरस 2:15; फिलिप्पियों 1:11

(vi)  8इफिसियों 2:10

(vii) रोमियों 6:22

 

पैराग्राफ़ -3

(i)  अच्छे कार्य करने की उनकी क्षमता बिल्कुल भी स्वयं से  नहीं, बल्कि पूरी तरह से मसीह के आत्मा से उत्पन्न होती है। (ii) उन्हें अच्छे कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए, उन्हें पहले से प्राप्त अनुग्रहों के अलावा  पवित्र आत्मा  के एक वास्तविक प्रभाव की आवश्यकता होती है, जो कि उनमें कार्य करे ताकि वे परमेश्वर की इच्छा को चाह सके  और पूरा कर सके। (iii) फिर भी यह उनके लापरवाह होने का कोई कारण नहीं है, जैसे कि उन्हें आत्मा की विशेष प्रेरणा के बिना कोई कर्तव्य करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय उन्हें अपने अंदर उपस्थित परमेश्वर  के अनुग्रह को जगाने के लिए मेहनत करनी चाहिए।

(i) यूहन्ना 15:4, 5

(ii) 2 कुरिन्थियों 3:5;

(iii) फिलिप्पियों 2:13; फिलिप्पियों 2:12; इब्रानियों 6:11, 12; यशायाह 64:7

 

पैराग्राफ़ -4

(i) जो लोग इस जीवन में आज्ञाकारिता की उच्चतम संभव ऊंचाइयों को पा लेते हैं, वे भी कर्तव्य से परे जाकर या परमेश्वर की अपेक्षा से अधिक करने के द्वारा पुरस्कार पाने के योग्य होने से बहुत दूर हैं। इसके बजाय वे वो बहुत कुछ करने से चूक जाते हैं, जिसे करना उनका कर्तव्य है।

(i) अय्यूब 9:2, 3; गलातियों 5:17; लूका 17:10

 

पैराग्राफ़ -5

(i)  हमारे कार्यों और आने वाली महिमा के बीच भारी असमानता और हमारे और परमेश्वर के बीच की अनंत दूरी के कारण हम अपने सर्वोत्तम कार्यों के द्वारा भी उसके हाथ से पाप की क्षमा या अनन्त जीवन पाने के योग्य नहीं बन सकते हैं। इन कार्यों के द्वारा हम न तो परमेश्वर को लाभ पहुँचा सकते हैं और न ही अपने पूर्व पापों के ऋण को चुका सकते हैं। (ii) जब हम ने वो सब कुछ कर लिया जो कर सकते हैं, तो भी केवल अपना कर्तव्य ही पूरा किया है और अलाभकारी दास ठहरे हैं। चूँकि हमारे अच्छे कार्य अच्छे हैं, वे निश्चित रूप से उसके आत्मा से निकले हैं ; (iii) और चूँकि वे हमारे द्वारा किए जाते हैं, वे अशुद्ध हैं और उनमें इतनी कमज़ोरी और असिद्धता होती है कि वे परमेश्वर के दंड की कठोरता का सामना नहीं कर सकते।

(i) रोमियों 3:20; इफिसियों 2:8, 9; रोमियों 4:6

(ii)  15 गलातियों 5:22, 23

(iii) 16यशायाह 64:6; भजन 143:2

 

पैराग्राफ़ -6

(i)  फिर भी विश्वासियों को मसीह के द्वारा स्वीकार किया जाता है और इसी प्रकार उनके अच्छे कार्य भी उसमें स्वीकार किए जाते हैं। (ii) इस स्वीकृति का मतलब यह नहीं है कि हमारे अच्छे कार्य परमेश्वर की दृष्टि में पूरी तरह से निर्दोष और दोषरहित हैं। इसके बजाय परमेश्वर उन्हें अपने पुत्र के माध्यम से देखता है, और इसलिए वह उसे स्वीकार करने और पुरस्कृत करने में प्रसन्न होता है जो सत्य-निष्ठा के साथ किया गया हो, भले ही उसमे कई कमजोरियां और खामियां हो।

(i) इफिसियों 1:6; 1 पतरस 2:5

(ii) मत्ती 25:21, 23; इब्रानियों 6:10

 

पैराग्राफ़ -7

(i)  नया जन्म नहीं पाए हुए लोगों द्वारा किए गए कार्य स्वयं परमेश्वर के  द्वारा आदेशित हो सकते हैं और उनके और दूसरों के लिए उपयोगी हो सकते हैं। (ii)  फिर भी वे विश्वास के द्वारा शुद्ध किए गए हृदय से नहीं आते हैं (iii) और वचन के अनुसार सही तरीके से नहीं किए जाते हैं (iv) और न ही परमेश्वर की महिमा के सही लक्ष्य के साथ किए जाते हैं (v) इसलिए वे कार्य पापमय हैं और परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। वे किसी को भी परमेश्वर से अनुग्रह प्राप्त करने के योग्य नहीं बना सकते, (vi) और फिर भी उनकी उपेक्षा करना और भी अधिक पापपूर्ण है और परमेश्वर को और भी अधिक क्रोधित करती है।

(i) 2 राजा 10:30; 1 राजा 21:27, 29

(ii) उत्पत्ति 4:5; इब्रानियों 11:4, 6

 (iii) 1 कुरिन्थियों 13:1

(iv) मत्ती 6:2, 5

(v)आमोस 5:21, 22; रोमियों 9:16; तीतुस 3:5

(vi)  अय्यूब 21:14, 15; मत्ती 25:41-43

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *