परन्तु जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा। (मत्ती 24:13)
जो जय पाए मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊँगा, जैसे मैं भी जय पाकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया। (प्रकाशितवाक्य 3:21)
कुछ झूंठे शिक्षक आपको ऊपर दी गई आयतें दिखाकर कहेंगे कि आप अपना उद्धार खो सकते हैं। क्या हम को जो की अनुगृह के द्वारा उद्धार पाएं हैं, अपने कर्मों के द्वारा उसकी रक्षा करनी पड़ेगी ? कदापि नहीं, जिस परमेश्वर के असीम अनुगृह ने हमारे अंदर उद्धार की शुरुवात की है, वही अनुगृह उसको पूरा भी करेगा:
जिसने तुम में अच्छा काम आरम्भ किया है, वही उसे यीशु मसीह के दिन तक पूरा करेगा। (फिलिप्पियों 1:6)
वैसे तो यह आयत ही काफ़ी है यह सिद्ध करने के लिए कि हम उद्धार नहीं खो सकते, फिर भी हम और कुछ आयतों पर ग़ौर करेंगे :
वे निकले तो हम ही में से, पर हम में के थे नहीं; क्योंकि यदि वे हम में के होते, तो हमारे साथ रहते; पर निकल इसलिये गए कि यह प्रगट हो कि वे सब हम में के नहीं हैं। (1 यहुन्ना 2:19)
इस आयत से यह स्पष्ट हो जाता है कि जो मसीहयत को छोड़ कर जाता है वो इसलिए जाता है, क्योंकि उसने उद्धार पाया ही नहीं। अगर जाने वाले हमारे (उद्धार पाए हुए) होते, तो नहीं जाते।
क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है। (रोमियों 8:29-30)
इन आयतों के अनुसार परमेश्वर जिनको चुनता है, उनको बुलाता है, धर्मी ठहराता है, अपने पुत्र यीशु मसीह की समानता में ढालता है और महिमा में ले जाता है। परमेश्वर के चुने हुए नाश नहीं हो सकते।
मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं; और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। (यूहन्ना 10:28-29)
यीशु मसीह अपनी भेड़ों को अनंत जीवन देता है, अनंत जीवन की संभावना नहीं। क्या कोई पिता परमेश्वर से बड़ा है ? क्या कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर के हाथ से यीशु मसीह की भेड़ों को छीन सकता है ? नहीं, असंभव।
आइये अब यह भी देख लेते हैं कि कौन अंत तक धीरज धरेगा या कौन जय पाएगा :
क्योकि जो कुछ परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जय प्राप्त करता है; और वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है। 5संसार पर जय पानेवाला कौन है? केवल वह जिसका यह विश्वास है कि यीशु, परमेश्वर का पुत्र है। (1 यूहन्ना 5:4-5)
जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है और परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु मसीह पर (सच्चा) विश्वास करता है, वो निश्चय ही जय पायेगा। दूसरे शब्दों में हर (सच्चा) विश्वासी अंत तक धीरज रखेगा और जय पायेगा।
जो यह कहता है कि हम उद्धार खो सकते हैं, महापाप करता है। क्यों ?
- क्योंकि वो परमेश्वर के चुनाव को व्यर्थ ठरता है।
- क्योंकि वो प्रभु यीशु मसीह की कुर्बानी को व्यर्थ ठहराता है।
- क्योंकि वह पवित्र आत्मा के कार्यों अर्थात नया जन्म, विश्वास और पवित्रीकरण को व्यर्थ ठहराता है।
- क्योंकि वह यह कहता है की शैतान, संसार और मनुष्य परमेश्वर से ज्यादा सामर्थी हैं और उसके किये उद्धार के कार्य को बिगाड़ सकते हैं।
- क्योंकि वह यह कहता है कि कोई परमेश्वर की संतान बनकर फिर से शैतान की संतान बन सकता है।
- क्योंकि वह यह कहता है कि बड़ा है वह जो बाहर है अर्थात शैतान और छोटा है वह जो अंदर है अर्थात पवित्र आत्मा।
- क्योंकि वह यह कहता है कि यीशु मसीह ने क्रूस पर चुने हुओं के उद्धार का काम ख़त्म नहीं किया- उसने अपने हिस्से का काम किया और हम अपने हिस्से का और जब हम अपने हिस्से का कार्य नहीं करते तो उद्धार खो देते हैं।
- क्योंकि वो यह कहता है कि कोई है जो पिता परमेश्वर से बड़ा है और यीशु मसीह की भेड़ों को उसके सर्वशक्तिमान हाथ से छुड़ा सकता है।
ऐसे परमेश्वर निंदक की शिक्षाओं से हमें सदा दूर रहना चाहिए।
लेकिन क्या “हम उद्धार नहीं खो सकते” इस शिक्षा का ये अर्थ है कि हम कुछ भी करें, पक्का स्वर्ग जाएंगे। नहीं, जो पापमय और पश्चात्तापरहित जीवन जीता है वह स्वर्ग नहीं जाएगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसने उद्धार खो दिया। इसका मतलब यह है कि उसने कभी उद्धार पाया ही नहीं था। जो वास्तव में उद्धार पाता है, वो इस पृथ्वी पर सिद्ध तो नहीं बनता है, लेकिन वह पाप का अभ्यास भी नहीं कर सकता है। जब उससे पाप होता है तो वह पश्चाताप करता है और अनुगृह के साधन अर्थात प्रार्थना, वचन-पठन, वचन-मनन, वचन-अध्ययन, आराधना और संगति के द्वारा पाप पर विजय पाने के भरसक प्रयास करता है। यह सब वह इसलिए करता है क्योंकि वह नई सृष्टि है और उसमे परमेश्वर का बीज बना रहता है और वह अब पुरानी ज़िन्दगी में न तो लौटना चाहता है; ना ही लौट सकता है :
जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप का अभ्यास नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उसमें बना रहता है, और वह पाप का अभ्यास कर ही नहीं सकता क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है। इसी से परमेश्वर की सन्तान और शैतान की सन्तान जाने जाते हैं; जो कोई धर्म के कामों का अभ्यास नहीं करता, वह परमेश्वर से नहीं और न वह जो अपने भाई से प्रेम नहीं रखता। (1 यूहन्ना 3:9-10)
प्रोत्साहन प्रार्थना : है पिता आपका धन्यवाद आपने मुझ से प्रेम किया और बचाया। आपका धन्यवाद कि मैं पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु मसीह में आपकी महिमा के लिए सुरक्षित हूँ । आपके लिए जीने में मेरी मदद करो। यीशु मसीह के नाम से। आमीन।
शिक्षाएं (Doctrines Involved in this Devotional):
संतों की रक्षा या संतों के अध्यवसाय की शिक्षा (Doctrine of the Perseverance of Saints)
अधिक अध्ययन करने के लिए:
- LogosInHindi on The Perseverance of the Saints
https://logosinhindi.com/perseverance-of-saints/
https://logosinhindi.com/name-be-erased-from-the-book-of-life/
- John MacArthur: Meeting There at Last: The Perseverance of the Saints:
https://www.youtube.com/watch?v=yrp-RFKpb8E
https://www.gty.org/library/sermons-library/90-270/the-perseverance-of- the-saints-part-1
https://www.gty.org/library/sermons-library/90-271/the-perseverance-of-the-saints-part-2
- Perseverance of the Saints: What is Reformed Theology? with R.C. Sproul:
Bahut bahut dhanyvad hamen sikhane ke liye god bless you
?
Praise God
Awesome great msg…thank u..v much…
Awesome msg bhaiya….thank you God bless you…bahut Sare doubt dur krne k liye