पैराग्राफ़ -1
(i) अपने नियुक्त और निश्चित समय पर परमेश्वर अपने वचन और आत्मा के द्वारा उन लोगों को प्रभावशाली रूप से बुला लेता है, (ii) जिनका उसने जीवन पाने के लिए भविष्य-निर्धारण किया था। वह उन्हें यीशु मसीह के द्वारा पाप और मृत्यु की उनकी स्वाभाविक अवस्था में से अनुग्रह और उद्धार के लिए बुला लेता है।(iii) वह परमेश्वर की बातों को समझने के लिए उनके मन को आत्मिक रूप से और उद्धारक रूप से प्रबुद्ध करता (ज्ञान देता) है। (iv) वह उनका पत्थर का हृदय निकाल देता है और उन्हें मांस का हृदय दे देता है। (v) वह उनकी इच्छा को नवीनीकृत कर देता है और अपनी सर्वशक्तिमान सामर्थ से उन्हें भलाई की ओर मोड़ देता है और प्रभावशाली रूप से उन्हें यीशु मसीह की ओर खींच लेता है। (vi) तौभी वह यह सब कुछ इस तरह से करता है कि वे पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से आते हैं, क्योंकि उन्हें उसके अनुग्रह के द्वारा इच्छुक बना दिया जाता है।
(i) रोमियों 8:30; रोमियों 11:7; इफिसियों 1:10, 11; 2 थिस्सलुनीकियों 2:13, 14
(ii) इफिसियों 2:1-6
(iii) प्रेरितों के काम 26:18; इफिसियों 1:17, 18
(iv) यहेजकेल 36:26
(v) व्यवस्थाविवरण 30:6; यहेजकेल 36:27; इफिसियों 1:19
(vi) भजन 110:3; श्रेष्ठगीत 1:4
पैराग्राफ़ -2
(i) यह प्रभावशाली बुलाहट केवल परमेश्वर के स्वतंत्र और विशेष अनुग्रह से प्रवाहित होती है, न कि बुलाए गए लोगों में पाई जाने वाली किसी पूर्वज्ञात चीज से। यह बुलाहट उनकी किसी शक्ति या कार्य के कारण भी नहीं दी जाती है; (ii) वे इसमें पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। वे पापों और अपराधों में तब तक मरे रहते हैं जब तक कि वे पवित्र आत्मा के द्वारा जीवित और नवीकृत नहीं किए जाते। (iii) इसके द्वारा वे इस बुलाहट का उत्तर देने और इसमें प्रस्तुत किए गए और दिए गए अनुग्रह को ग्रहण करने में सक्षम होते हैं। यह प्रत्युत्तर एक ऐसी सामर्थ द्वारा संभव बनाया जाता है जो उस सामर्थ से कम नहीं है जिसने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया।
(i) 2 तीमुथियुस 1:9; इफिसियों 2:8
(ii) 1 कुरिन्थियों 2:14; इफिसियों 2:5; जॉन 5:25
(iii) इफिसियों 1:19, 20
पैराग्राफ़ -3
(i) बचपन में मरने वाले शिशुओं को मसीह द्वारा आत्मा के माध्यम से पुनर्जीवित किया जाता है और बचाया जाता है—(ii) आत्मा जो जब और जहां और जैसा वह चाहता है, काम करता है। यही बात हर चुने हुए व्यक्ति के लिए सच है जो कि वचन की सेवकाई द्वारा बाहरी रूप से बुलाए जाने में असमर्थ है .
(i) यूहन्ना 3:3, 5, 6
(ii) 11यूहन्ना 3:8
पैराग्राफ़ -4
(i) जो चुने नहीं गए हैं, वे न तो मसीह के पास आएँगे और न ही वे वास्तव में आने में समर्थ हैं और इसलिए उनका उद्धार नहीं हो सकता है, क्योंकि वे पिता द्वारा प्रभावशाली रूप से खींच कर नहीं लाए जाते हैं। (ii) उन्हें वचन की सेवकाई के द्वारा बुलाहट दी जा सकती है और आत्मा अपना कुछ सामान्य कार्य उन पर कर सकता है, पर इससे उद्धार नहीं होता। (iii) जो लोग मसीही धर्म को स्वीकार नहीं करते हैं, उनके लिए तो यह और भी असंभव है, चाहे वे प्रकृति के प्रकाश (प्रकृति से आने वाले ज्ञान) और अपने धर्म की शिक्षाओं के अनुसार कितने ही परिश्रम से अपना जीवन व्यतीत करें।
(i) यूहन्ना 6:44, 45, 65; 1 यूहन्ना 2:24, 25
(ii) मत्ती 22:14; मत्ती 13:20, 21; इब्रानियों 6:4, 5
(iii) प्रेरितों के काम 4:12; यूहन्ना 4:22; यूहन्ना 17:3