Reformed baptist church in jaipur

बैपटिस्ट विश्वास अंगीकार अध्याय 8 – मध्यस्थ मसीह

पैराग्राफ़ -1

(i) परमेश्वर को अपने अनन्त उद्देश्य में अपने एकलौते पुत्र  प्रभु यीशु को परमेश्वर और मानवता के बीच मध्यस्थ होने के लिए चुनना और नियुक्त करना भाया। परमेश्वर ने उसे (ii) नबी, (iii) याजक, और (iv) राजा,  (v) और अपने लोगों का सिर और उद्धारकर्ता, (vi) सब वस्तुओं का वारिस, (vii) और जगत का न्यायी होने के लिये चुना। (viii) अनादि काल से परमेश्वर ने पुत्र को उसकी सन्तान होने के लिए लोग दिए । समय आने पर इन लोगों को उसके द्वारा छुड़ाया जाएगा, बुलाया जाएगा, धर्मी ठहराया जाएगा, पवित्र किया जाएगा और महिमा में ले जाया जाएगा।

(i) यशायाह 42:1; 1 पतरस 1:19, 20

(ii) प्रेरितों 3:22

(iii) इब्रानियों 5:5, 6

(iv) भजन 2:6; लूका 1:33

(v)  इफिसियों 1:22, 23

(vi) इब्रानियों 1:2

(vii) प्रेरितों 17:31

(viii) यशायाह 53:10; यूहन्ना 17:6; रोमियों 8:30

 

पैराग्राफ़ -2

(i)  परमेश्वर का पुत्र पवित्र त्रिएकता का दूसरा व्यक्ति वास्तव में और अनादि काल से परमेश्वर है। वह पिता की महिमा का प्रकाश है; तत्त्व  में वही और उसके बराबर है। उसने संसार बनाया और जो कुछ भी उसने बनाया है, उसे बनाए रखता है और उस पर राज करता है। जब निर्धारित समय आया, तो उसने अपने आप पर मानव स्वभाव इसकी  सभी आवश्यक विशिष्टताओं और सामान्य कमजोरियों के साथ ले लिया, (ii) लेकिन बिना पाप के। वह पवित्र आत्मा द्वारा कुँवारी मरियम के गर्भ में आया । पवित्र आत्मा कुँवारी मरियम पर उतरा और परमप्रधान की सामर्थ ने उस पर छाया की। इस प्रकार वह यहूदा के गोत्र की एक स्त्री से जन्मा और पवित्र शास्त्र के अनुसार अब्राहम और दाऊद का वंशज था। दो संपूर्ण, पूर्ण और अलग-अलग स्वभाव एक दूसरे में परिवर्तित हुए बिना या एक अलग या मिश्रित प्रकृति का निर्माण करने के लिए एक दुसरे में मिश्रित हुए बिना अविभाज्य रूप से (कभी अलग न होने के लिए) एक व्यक्ति में एक साथ जुड़ गए। यह व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर और वास्तव में मनुष्य है, फिर भी एक मसीह है, जो कि परमेश्वर और मानवता के बीच एकमात्र मध्यस्थ है।

(i) यूहन्ना 1:14; गलातियों 4:4

(ii)  रोमियों 8:3; इब्रानियों 2:14, 16, 17; इब्रानियों 4:15

(iii) 11 मत्ती 1:22, 23; लूका 1:27, 31, 35

(iv) रोमियों 9:5; 1 तीमुथियुस 2:5

 

पैराग्राफ़ -3

(i) प्रभु यीशु जो कि अपने मानव स्वभाव में इस तरह से पुत्र के व्यक्ति में परमेश्वर के साथ जुड़ा हुआ था, को पवित्र किया गया और उसका  पवित्र आत्मा के साथ अभिषेक किया गया। (ii)  उसके पास अपने आप में बुद्धि और ज्ञान के सभी खजाने थे। (iii) पिता को यह भाया कि उसने सारी परिपूर्णता का उसमें वास करवा दिया (iv) ताकि—पवित्र, निर्दोष, निर्मल, (v) और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर (vi)—वह मध्यस्थ और जमानतदार के पद को पूरा करने के लिए पूरी तरह से योग्य बन जाए। (vii) उसने इस पद को अपने ऊपर नहीं लिया, परन्तु उसके पिता ने उसे बुलाया, (viii) जिसने सारी सामर्थ और न्याय उसके हाथ में दिया और उसे उन्हें पूरा करने की आज्ञा दी।

(i) भजन 45:7; प्रेरितों के काम 10:38; यूहन्ना 3:34

(ii) कुलुस्सियों 2:3

(iii) कुलुस्सियों 1:19

(iv) इब्रानियों 7:26

(v) यूहन्ना 1:14

(vi) इब्रानियों 7:22

(vii) इब्रानियों 5:5

(viii) यूहन्ना 5:22, 27; मत्ती 28:18; प्रेरितों 2:36

 

पैराग्राफ़ -4

(i) प्रभु यीशु ने पूरी तरह स्वेच्छा से इस पद को ग्रहण किया। (ii) इसका निर्वहन करने के लिए वह व्यवस्था के अंतर्गत जन्मा (iii) और इसे सिद्ध रूप से पूरा किया। उसने उस दंड का भी अनुभव किया, जिसके हम योग्य थे और जिसे हमें सहना और भुगतना चाहिए था। (iv) वह हमारे लिए पाप और श्राप बन गया। उसने अपने आत्मा में अत्यंत भारी दुखों को और अपने शरीर में अत्यंत दर्दनाक पीड़ाओं को सहा। (v) वह क्रूस पर चढ़ाया गया और मर गया और मृत्यु की स्थिति में रहा, फिर भी उसका शरीर सड़ा नहीं । (vi) तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जी उठा—(vii) उसी देह के साथ, जिसमे उसने दुःख उठाया (viii) इसी देह में वह स्वर्ग पर भी चढ़ा, (ix) जहां वह अपने पिता के दाहिने हाथ विराजमान होकर (x) विनती करता है। (xi) वह युग के अन्त में मनुष्यों और स्वर्गदूतों का न्याय करने को लौटेगा।

(i) भजन 40:7, 8; इब्रानियों 10:5-10; यूहन्ना  10:18

(ii) गलातियों 4:4; मत्ती 3:15

(iii) गलातियों 3:13; यशायाह 53:6; 1 पतरस 3:18

(iv) 2 कुरिन्थियों 5:21

(v) मत्ती 26:37, 38; लूका 22:44; मत्ती 27:46

(vi) प्रेरितों के काम 13:37

(vii) 1 कुरिन्थियों 15:3, 4

(viii) यूहन्ना 20:25, 27

(ix) मरकुस 16:19; प्रेरितों के काम 1:9-11

(x) रोमियों 8:34; इब्रानियों 9:24

(xi) प्रेरितों के काम 10:42; रोमियों 14:9, 10; प्रेरितों के काम 1:11; 2 पतरस 2:4

 

पैराग्राफ़ -5

(i) प्रभु यीशु ने परमेश्वर के न्याय को पूरी तरह से सन्तुष्ट कर दिया, (हमारा पिता के साथ) मेल मिलाप करवा दिया और उन सब के लिये जो पिता ने उसे दिए हैं स्वर्ग के राज्य में अनन्त मीरास मोल ले ली। (ii) उसने अपनी सिद्ध आज्ञाकारिता और स्वयं के बलिदान के द्वारा इन बातों को पूरा किया है। यह बलिदान उस ने एक ही बार में सदा के लिए अनंत आत्मा के द्वारा परमेश्वर को चढ़ाया।

(i) यूहन्ना 17:2; इब्रानियों 9:15

(ii) इब्रानियों 9:14; इब्रानियों 10:14; रोमियों 3:25, 26

पैराग्राफ़ -6

(i) छुटकारे की कीमत वास्तव में मसीह द्वारा अपने देहधारण के बाद तक नहीं चुकाई गई थी। फिर भी इसकी योग्यता, प्रभाव और लाभ संसार की शुरुआत के बाद से हर युग में चुने हुए लोगों को उन वादों, प्ररुपों (प्रकारों) और बलिदानों के द्वारा प्रदान किए गए थे, जो उसे सांप का सर कुचलने वाली संतान (ii) और जगत की उत्पति से घात किए हुए मेम्ने के रूप में प्रकट करते थे और इंगित करते थे। (iii) वह कल और आज और युगानुयुग एक सा है।

(i) 1 कुरिन्थियों 4:10; इब्रानियों 4:2; 1 पतरस 1:10, 11

(ii) प्रकाशितवाक्य 13:8

(iii) इब्रानियों 13:8

 

पैराग्राफ़ -7

(i)  मध्यस्थता के अपने कार्य में मसीह दोनों स्वभावों के अनुसार कार्य करता है, प्रत्येक स्वाभाव द्वारा वह करता है जो उसके लिए उपयुक्त है। फिर भी व्यक्ति की एकता (एक व्यक्ति होने) के कारण, जो एक स्वाभाव के लिए उपयुक्त है वह कभी-कभी शास्त्र में दुसरे स्वाभाव के पदनाम केअंतर्गत व्यक्ति केद्वारा किया हुआ दिखाया जाता है।

(i) यूहन्ना 3:13; प्रेरितों के काम 20:28

 

पैराग्राफ़ -8

(i) उन सभी के लिए जिनके लिए मसीह ने अनन्त छुटकारा प्राप्त किया है, पर वह निश्चित रूप से और प्रभावी रूप से इसे लागू करता है और प्रदान करता है। वह उनके लिए विनती करता है, (ii) उन्हें अपने आत्मा के द्वारा अपने साथ जोड़ता है और अपने वचन में और अपने वचन के द्वारा उन पर उद्धार का भेद प्रगट करता है। वह उन्हें विश्वास करने और आज्ञा मानने के लिए राजी करता है (iii) और अपने वचन और आत्मा के द्वारा उनके हृदयों पर राज करता है।(iv) वह अपनी सर्वशक्‍तिमान सामर्थ्य और बुद्धि से उनके सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है—(v) ऐसी विधियों और तरीकों का उपयोग करके जो उसके अद्भुत और अगम (समझ से परे) शासन के साथ पूरी तरह से संगत (के अनुसार) हैं। ये सभी चीजें नि:शुल्क और पूर्ण अनुग्रह के द्वारा दी जाती हैं,  किसी शर्त के आधार पर नहीं जो परमेश्वर ने पहले से देख ली हो कि वो पूरा करेंगे।

(i) यूहन्ना 6:37; यूहन्ना 10:15, 16; यूहन्ना 17:9; रोमियों 5:10

(ii) यूहन्ना 17:6; इफिसियों 1:9; 1 यूहन्ना 5:20

(iii) रोमियों 8:9, 14

(iv) भजन 110:1; 1 कुरिन्थियों 15:25, 26

(v) यूहन्ना 3:8; इफिसियों 1:8

 

पैराग्राफ़ -9

(i) परमेश्वर और मानवता के बीच मध्यस्थ का यह पद केवल मसीह के लिए उपयुक्त है, जो परमेश्वर के लोगों का नबी, याजक और राजा है। यह पद पूर्ण या आंशिक रूप से किसी अन्य को नहीं हस्तांतरित किया (दिया) जा सकता है।

(i) 1 तीमुथियुस 2:5

 

पैराग्राफ़ -10

(i)  इन पदों की संख्या एवं स्वरूप महत्त्वपूर्ण है। चूँकि हम अज्ञानी हैं, हमें उसके नबी (होने के) पद की आवश्यकता है। (ii) चूँकि हम परमेश्वर से दूर हो गए हैं और अपनी सर्वोत्तम सेवा में अपूर्ण हैं, हमारा परमेश्वर के साथ  मेल-मिलाप करवाने और हमें उसके सामने ग्रहणयोग्य प्रस्तुत करने के लिए हमे उसके याजक पद की आवश्यकता है। (iii) चूँकि हम परमेश्वर के विरोधी हैं और हमारे आत्मिक शत्रुओं से बचने और सुरक्षित होने के लिए उसके पास लौटने में पूरी तरह से असमर्थ हैं, हमें उसके राजकीय पद की आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत वह  उसके स्वर्गीय राज्य के लिए हमें समझाता है, वश में करता है, आकर्षित करता है, हमारी सहायता करता है, हमे छुड़ाता है और हमारी रक्षा करता है।

(i) यूहन्ना 1:18

(ii) कुलुस्सियों 1:21; गलातियों 5:17

(iii) यूहन्ना 16:8; भजन 110:3; लूका 1:74, 75

 

 

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