पैराग्राफ़ -1
(i, ii) सभी चीज़ों का अच्छा सृष्टिकर्ता परमेश्वर अपनी अनंत सामर्थ और बुद्धि में अपने सिद्ध बुद्धियुक्त और पवित्र प्रबंधन के द्वारा सबसे बड़े से लेकर सबसे छोटे तक सभी प्राणियों और चीजों को जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया था उसके लिए संभालता है, निर्देशित करता है, व्यवस्थित करता है और नियंत्रित करता है। (iii) वह अपने अचूक पूर्वज्ञान और अपनी ही इच्छा की स्वतंत्र और अपरिवर्तनीय मंत्रणा के अनुसार शासन करता है। उसका प्रबंधन उसकी बुद्धि, सामर्थ, न्याय, असीम भलाई और दया की महिमा की स्तुति उत्पन्न करता है।
(i, ii) इब्रानियों 1:3; अय्यूब 38:11; यशायाह 46:10, 11; भजन 135:6; 2मत्ती 10:29–31
(iii) 3 इफिसियों 1:11
पैराग्राफ़ -2
(i) सब कुछ अपरिवर्तनीय रूप से और निश्चित रूप से परमेश्वर के पूर्वज्ञान और विधान के अनुसार होता है, (ii) जो की प्रथम कारण है। इस प्रकार किसी के साथ कुछ भी संयोग से या परमेश्वर के विधान के बाहर नहीं होता है। (iii) फिर भी उसी विधान के द्वारा परमेश्वर सभी चीजों को द्वितीय कारणों की प्रकृति के अनुसार या तो अनिवार्य रूप से, स्वतंत्र रूप से, या अन्य कारणों के के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होने की व्यवस्था करता है।
(i) प्रेरितों के काम 2:23
(ii) 5 नीतिवचन 16:33
(iii) 6 उत्पत्ति 8:22
पैराग्राफ़ -3
(i) परमेश्वर अपने साधारण प्रबंधन में साधनों का उपयोग करता है, (ii) यद्यपि वह उनके बिना, (iii) उनसे परे, (iii) और उनके विपरीत (iv) अपनी इच्छा के अनुसार काम करने के लिए स्वतंत्र है।
(i) प्रेरितों के काम 27:31, 44; यशायाह 55:10, 11
(ii) होशे 1:7
(iii) रोमियों 4:19-21
(iv) दानिय्येल 3:27
पैराग्राफ़ -4
(i) परमेश्वर की सर्वशक्तिमान सामर्थ, अथाह बुद्धि, और अनंत भलाई उसके प्रबंधन में इतनी अच्छी तरह से प्रदर्शित होती है कि उसकी संप्रभु योजना में स्वर्गदूतों और मनुष्यों दोनों का पहला पतन और हर दूसरा पापमय कार्य भी शामिल है। (ii) पापमय कार्यों पर परमेश्वर का प्रबंधन सिर्फ अनुमति से नहीं होता है। इसके विपरीत परमेश्वर परम बुद्धिमान और परम शक्तिशाली रूप से पापमय कार्यों को सीमित और अन्य तरीकों से व्यवस्थित और नियंत्रित करता है। (iii)तरीकों की एक जटिल व्यवस्था के द्वारा वह अपने पूर्ण पवित्र उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पापमय कार्यों को नियंत्रित करता है। (iv) फिर भी वह ऐसा इस तरह से करता है कि उनके कार्यों की पापमयता केवल प्राणियों से उत्पन्न होती है और परमेश्वर से नहीं। चूँकि परमेश्वर पूरी तरह से पवित्र और धर्मी है, वह न तो पाप को उत्पन्न कर सकता है और न ही स्वीकृति दे सकता है।
(i) रोमियों 11:32-34; 2 शमूएल 24:1, 1 इतिहास 21:1
(ii) 2 राजा 19:28; भजन 76:10
(iii) उत्पत्ति 50:20; यशायाह 10:6, 7, 12
(iv) भजन 50:21; 1 यूहन्ना 2:16
पैराग्राफ़ -5
(i) सिद्ध रूप से बुद्धिमान, धर्मी, और अनुग्रहकारी परमेश्वर अक्सर अपने स्वयं के बच्चों को कुछ समय के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों और उनके स्वयं के हृदयों की पापमयता का अनुभव करने की अनुमति देता है। वह ऐसा उन्हें उनके पिछले पापों के लिए ताड़ना देने के लिए करता है या उन्हें उनके हृदय की भ्रष्टता और छल की छिपी ताकत से अवगत कराने के लिए करता है, ताकि वे विनम्र बन सकें। वह उनके सम्पोषण के लिए उन्हें उस पर और घनिष्ट और नित्य रूप से निर्भर बनाने के लिए, भविष्य की उन सभी परिस्थितियों के बारे में अधिक सतर्क करने के लिए, जो पाप की ओर ले जा सकती हैं और अन्य न्यायोचित और पवित्र उद्देश्यों से भी ऐसा करता है। (ii) इसलिए उसके चुने हुओं के साथ जो कुछ भी होता है, वह उसकी महिमा के लिए और उनकी भलाई के लिए उसके द्वारा ठहराए जाने के कारण ही होता है।
(i) 2 इतिहास 32:25, 26, 31; 2 कुरिन्थियों 12:7-9
(ii) रोमियों 8:28
पैराग्राफ़ -6
(i) एक धर्मी न्यायी होने के नाते परमेश्वर कभी-कभी दुष्टों और अधर्मी लोगों को उनके पापों के कारण अन्धा और कठोर कर देता है। (ii) वह अपना वह अनुग्रह उन से रोक लेता है, जिस के द्वारा वे सत्य का ज्ञान प्राप्त कर सकते थे और जिसके द्वारा उनके ह्रदय नए हो सकते थे। (iii) इतना ही नहीं, बल्कि कभी-कभी वह उन वरदानों को भी ले लेता है जो उनके पास पहले से थे (iv) और उन्हें ऐसी परिस्थितियों में डाल देता है, जिन्हें उनके भ्रष्ट स्वाभाव पाप के अवसरों के रूप में इस्तेमाल करे। (v) इसके अलावा, वह उन्हें उनकी स्वयं की वासनाओं, संसार के प्रलोभनों, और शैतान की शक्ति के हवाले कर देता है, (vi) ताकि वे उन्हीं साधनों के द्वारा स्वयं को कठोर बना लें, जिनका उपयोग परमेश्वर दूसरों को नरम करने के लिए करता है।
(i) रोमियों 1:24–26, 28; रोमियों 11:7, 8
(ii) व्यवस्थाविवरण 29:4
(iii) मत्ती 13:12
(iv) व्यवस्थाविवरण 2:30; 2 राजा 8:12, 13
(v) भजन 81:11,12; 2 थिस्सलुनीकियों 2:10-12
(vi) निर्गमन 8:15, 32; यशायाह 6:9, 10; 1 पतरस 2:7, 8
पैराग्राफ़ -7
(i) सामान्य रूप से परमेश्वर के प्रबंधन में सभी प्राणी शामिल हैं, लेकिन यह विशेष रूप से अपने लोगों की देखभाल करता है और सभी चीजों को ऐसे व्यवस्थित करता है कि उनकी भलाई ही हो।
(i) 1 तीमुथियुस 4:10; आमोस 9:8, 9; यशायाह 43:3–5