पैराग्राफ़ -1
(i) आरम्भ में परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा (ii) को यह भाया कि वह संसारऔर उसमे की सभी दृश्य और अदृश्य वस्तुओं को छह दिन की अवधि में बनाए और जो उसने बनाया वह सब कुछ बहुत अच्छा था। (iii) उसने ऐसा अपनी अनंत सामर्थ, ज्ञान और अच्छाई की महिमा प्रकट करने के लिए किया।
(i) 1 यूहन्ना 1:2, 3; इब्रानियों 1:2; अय्यूब 26:13
(ii) 2 कुलुस्सियों 1:16; उत्पत्ति 1:31
(iii) 3रोमियों 1:20
पैराग्राफ़ -2
(i) परमेश्वर ने अन्य सभी प्राणियों को बनाने के बाद मानव जाति की रचना की। उसने उन्हें पुरुष और स्त्री बनाया, (ii) तर्कसंगत और अमर आत्माओं के साथ, (iii) जिससे वे परमेश्वर के लिए जीवन जीने में समर्थ हो जाए, जिसके लिए उन्हें बनाया गया था। वे ज्ञान, धार्मिकता और सच्ची पवित्रता से संपन्न करके परमेश्वर के स्वरूप में रचे गए थे। (iv) उनके हृदय में परमेश्वर की व्यवस्था लिखी हुई थी (v) और उनके पास उसे पूरा करने की सामर्थ थी। तथापि वे व्यवस्था का उल्लंघन करने में भी समर्थ थे, क्योंकि उन्हें उनकी अपनी इच्छा की स्वतंत्रता पर छोड़ दिया गया था, जो कि परिवर्तनशील थी।
(i) उत्पत्ति 1:27
(ii) उत्पत्ति 2:7
(iii) सभोपदेशक 7:29; उत्पत्ति 1:26
(iv) रोमियों 2:14, 15
(v) 8 उत्पत्ति 3:6
पैराग्राफ़ -3
(i) उनके ह्रृदयों में लिखी व्यवस्या के अतिरिक्त, उन्हें भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाने की आज्ञा मिली थी। (ii) जब तक वे इस आज्ञा का पालन करते रहे, तब तक वे परमेश्वर की संगति में आनन्दित रहे और प्राणियों के ऊपर प्रभुता करते रहे।
(i) उत्पत्ति 2:17
(ii) उत्पत्ति 1:26, 28