Reformed baptist church in jaipur

1689 बैपटिस्ट विश्वास अंगीकार अध्याय 2 – परमेश्वर और पवित्र त्रिएकता

पैराग्राफ़ -1

(i) हमारा परमेश्वर यहोवा एक है और एकमात्र जीवित और सच्चा परमेश्वर है।

(ii) वह स्वयं से अस्तित्व में है (iii) और अपने तत्त्व (substance/essence) में और सिद्धता (perfection) में अनंत है। उसके तत्त्व (substance/essence) को उसके अलावा और कोई नहीं समझ सकता।

(iv) वह शुद्ध रूप से आत्मा है।

(v) वह अदृश्य है और उसके पास कोई शरीर, खंड (parts) या भावनाएँ (passions/feelings/emotions) नहीं हैं। केवल उसके पास ही अमरत्व (immortality) है और वह अगम्य (जहाँ कोई नहीं पहुंच सके) ज्योति में रहता है।

(vi) वह अपरिवर्तनशील, (vii) अपार (immense/infinite/transcendental), (viii) अनादि-अनंत (eternal), (ix) अचिंत्य/अबोधगम्य (समझ से परे), सर्वशक्तिमान, (x) हर तरह से अनंत, सर्वथा पवित्र, (xi) सिद्ध रूप से (perfectly) बुद्धिमान, पूरी तरह स्वतंत्र और पूरी तरह से अबाध्य (completely absolute) है। वह अपनी अपरिवर्तनीय और पूरी तरह से धर्मी इच्छा के मत के अनुसार (xii) अपनी महिमा के लिए सब कुछ करता है।

(xiii) वह सर्वाधिक प्रेमी, अनुग्रहकारी, दयालु और धैर्यवान है। उसमे से  भलाई और सच्चाई उमड़ती रहती है और वह अधर्म, अपराध और पाप को क्षमा करता है। जो उसे पूरे मन से खोजते हैं, वह उन्हें प्रतिफल देता है।

(xiv) साथ ही वह अपनी दण्डाज्ञाओं (judgments) में पूरी तरह न्यायी और भयानक है। (xv) वह सब पापों से घृणा करता है, (xvi) और दोषी को निश्चित रूप से बिना दंड के नहीं छोड़ेगा।

 

(i) 1 कुरिन्थियों 8:4, 6; व्यवस्थाविवरण 6:4

(ii) यिर्मयाह 10:10; यशायाह 48:12

(iii) निर्गमन 3:14

(iv) यूहन्ना 4:24

(v) 1 तीमुथियुस 1:17; व्यवस्थाविवरण 4:15, 16

(vi)  मलाकी 3:6

(vii) 1 राजा 8:27; यिर्मयाह 23:23

(viii) भजन 90:2

(ix) उत्पत्ति 17:1

(x) यशायाह 6:3

 (xi) भजन 115:3; यशायाह 46:10

(xii) नीतिवचन 16:4; रोमियों 11:36

(xiii) निर्गमन 34:6, 7; इब्रानियों 11:6

(xiv) नहेमायाह 9:32, 33

(xv) भजन 5:5, 6

(xvi)  निर्गमन 34:7; नहूम 1:2, 3

 

पैराग्राफ़ -2

(i) परमेश्वर के पास अपने आप में और अपने आप से सर्व जीवन, (ii) महिमा,  (iii) भलाई, (iv) और परम धन्यता (परम सुख) है; केवल वही अपने आप में सर्व-पर्याप्त (all-sufficient) है। उसे अपने बनाए हुए किसी भी प्राणी की आवश्यकता नहीं है और न ही वह उनसे कोई महिमा लेता है।

(v) इसके विपरीत वह अपनी स्वयं की महिमा उनमे, उनके द्वारा, उनके प्रति और उन पर प्रकट करता है।  केवल वही  सारे अस्तित्व का स्रोत है और सब कुछ उसी से, उसी के द्वारा और उसी के लिए है।

(vi) उसके पास सभी प्राणियों के द्वारा, उनके लिए और उन पर जो वह चाहे वह करने का पूर्ण संप्रभु (sovereign) अधिकार है।

(vii) उसकी दृष्टि में सब कुछ खुला और दृश्यमान (visible) है।

(viii) उसका ज्ञान अनंत और अचूक/त्रुटिहीन/सिद्ध (infallible) है। यह किसी प्राणी पर निर्भर नहीं है, इसलिए उसके लिए कुछ भी आकस्मिक (contingent/accidental) या अनिश्चित नहीं है। वह अपनी सारी योजनाओं, अपने सारे कामों, (ix) और अपनी सारी आज्ञाओं में परम पवित्र है।

(x) परमेश्वर स्वर्गदूतों और मनुष्यों की सम्पूर्ण आराधना,  सेवा, या आज्ञाकारिता और जो कुछ भी वह उनसे मांगे, के योग्य है।

(i) यूहन्ना 5:26

(ii) भजन 148:13

(iii) भजन 119:68

(iv) अय्यूब 22:2, 3

(v) रोमियों 11:34–36

(vi) दानिय्येल 4:25, 34, 35

(vii) इब्रानियों 4:13

(viii) यहेजकेल 11:5; प्रेरितों के काम 15:18

(ix) भजन 145:17

(x) प्रकाशितवाक्य 5:12-14

 

पैराग्राफ़ -3

(i) इस दिव्य (divine) और अनंत अस्तित्व में तीन वास्तविक व्यक्ति हैं, अर्थात पिता, वचन या पुत्र और पवित्र आत्मा।

(ii) इन तीनों में एक ही तत्त्व (substance/essence), सामर्थ और अनादि-अनंत होने का गुण (eternity) है, प्रत्येक में संपूर्ण दिव्य तत्त्व है, तत्त्व का हिस्सा नहीं है।

(iii) पिता किसी से उत्पन्न नहीं हुआ, न किसी से जन्मा, न किसी से निकला। पुत्र अनादि से पिता से जन्मा (eternally begotten)।

(iv) पवित्र आत्मा पिता और पुत्र से निकलता (proceeds) है।

(v) तीनों अनंत और अनादि (जिसकी कोई शुरुआत ना हो) हैं और इसलिए केवल एक ही परमेश्वर हैं, जिसको स्वाभाव में और अस्तित्व में विभाजित नहीं किया जा सकता है। तथापि इन तीनों में कई विशिष्ट विशेषताओं (distinctive characteristics) और व्यक्तिगत संबंधों (individual relations) के कारण अंतर किया जाता है। त्रिएकता (Trinity) का यह सत्य परमेश्वर के साथ हमारी सारी संगति और उस पर हमारी शान्ति देने वाली निर्भरता का आधार है।

(i) 1 यूहन्ना 5:7; मत्ती 28:19; 2 कुरिन्थियों 13:14

(ii) 28 निर्गमन 3:14; यूहन्ना 14:11; 1 कुरिन्थियों 8:6

(iii) यूहन्ना 1:14,18

(iv) यूहन्ना 15:26; गलातियों 4:6

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