पैराग्राफ़ -1
(i) परमेश्वर ने अनंत में अपने अलावा किसी से भी प्रभावित हुए बिना उन सब बातों का निर्धारण कर दिया था जो भविष्य में होंगी। (ii) उसने ऐसा अपनी इच्छा की पूरी तरह बुद्धिमान और पवित्र सम्मति से स्वतंत्र और अपरिवर्तनीय रूप से किया। तौभी परमेश्वर ने ऐसा इस रीति से किया कि वह न तो पाप का जनक है और न किसी के पाप में सहभागी है। (iii) यह विधान/भविष्य निर्धारण प्राणी की इच्छा का उल्लंघन नहीं करता है; ना ही द्वितीय कारणों के स्वतंत्र कार्य या जिम्मेदारी को हटाता है। इसके विपरीत, ये (द्वितीय कारणों के स्वतंत्र कार्यऔर जिम्मेदारी) परमेश्वर के विधान के द्वारा निश्चित किए गए हैं। (iv) परमेश्वर का विधान सभी बातों को निर्देशित करने के द्वारा परमेश्वर की बुद्धि का प्रदर्शन करता है और उसके विधान को पूरा करने में उसकी सामर्थ और विश्वासयोग्यता प्रदर्शित होती है।
(i) 1 यशायाह 46:10; इफिसियों 1:11; इब्रानियों 6:17; रोमियों 9:15, 18
(ii) याकूब 1:13; 1 यूहन्ना 1:5
(iii) प्रेरितों 4:27, 28; यूहन्ना 19:11
(iv) गिनती 23:19; इफिसियों 1:3-5
पैराग्राफ़ -2
(i) परमेश्वर वह सब कुछ जानता है जो किसी भी परिस्थिति में हो सकता है। (ii) फिर भी किसी भी बात के विषय में उसका विधान भविष्य में इसे देखने या विशेष परिस्थितियों में घटित होने के पूर्वज्ञान पर आधारित नहीं है।
(i) प्रेरितों के काम 15:18
(ii) 6 रोमियों 9:11, 13, 16, 18
पैराग्राफ़ -3
(i) परमेश्वर के विधान के द्वारा और उसकी महिमा के प्रदर्शन के लिए कुछ मनुष्यों और स्वर्गदूतों को यीशु मसीह के द्वारा (ii) उसके महिमामय अनुग्रह की स्तुति के लिए पूर्वनियत (या पहले से नियुक्त) कर दिया गया है कि वे अनन्त जीवन पाएं। (iii) अन्य अपने पाप में रहने के लिए छोड़ दिए गए हैं, ताकि उसके महिमामय न्याय की स्तुति के लिए उनका न्यायोचित विनाश हो।
(i) 1 तीमुथियुस 5:21; मत्ती 25:34
(ii) 8 इफिसियों 1:5, 6
(iii) 9 रोमियों 9:22, 23; यहूदा 4
पैराग्राफ़ -4
(i) ये पूर्वनिर्धारित और पहले से ठहराए गए स्वर्गदूत और लोग व्यक्तिगत रूप से और अपरिवर्तनीय रूप से नामित हैं और उनकी संख्या इतनी पक्की और निश्चित है कि इसे न तो बढ़ाया जा सकता है और न ही घटाया जा सकता है।
(i) 2 तीमुथियुस 2:19; यूहन्ना 13:18
पैराग्राफ़ -5
(i) वे लोग जो जीवन के लिये पहले से ठहराए गए हैं, परमेश्वर के द्वारा जगत की उत्पत्ति से पहिले उसके अनन्त और अपरिवर्तनीय उद्देश्य और उसकी इच्छा की गुप्त मंत्रणा और सुमति के अनुसार चुने गए थे। उसने उन्हें मसीह में अनंत महिमा के लिए विशुद्ध रूप से अपने स्वतंत्र अनुग्रह और प्रेम के परिणामस्वरूप चुना, (ii) इसके लिए न तो प्राणी कोई शर्त पूरी करते हैं; ना ही उनमे ऐसा कोई कारण है, जिसने परमेश्वर को ऐसा करने के लिए अग्रसर किया।
(i) इफिसियों 1:4, 9, 11; रोमियों 8:30; 2 तीमुथियुस 1:9; 1 थिस्सलुनीकियों 5:9
(ii) 12 रोमियों 9:13, 16; इफिसियों 2:5, 12
पैराग्राफ़ -6
(i) जैसे परमेश्वर ने चुने हुओं को महिमा के लिये नियुक्त किया है, वैसे ही उसने अपनी इच्छा के अनन्त और पूर्ण स्वतंत्र उद्देश्य से सब साधनों को पहले से ठहराया है। (ii) इसलिए आदम में पतित जो चुने हुए लोग थे, वे मसीह के द्वारा खरीद लिए गए हैं (iii) और उपयुक्त समय पर उसके आत्मा के कार्य के द्वारा मसीह में विश्वास करने के लिए प्रभावशाली रूप से बुलाए जाते हैं। वे उद्धार के लिए विश्वास के माध्यम से उसकी सामर्थ के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं, गोद लिए जाते हैं, पवित्र किए जाते हैं (iv) और उनकी रक्षा की जाती है। (v) चुने हुए लोगों को छोड़कर कोई भी मसीह के द्वारा नहीं खरिदा गया है, ना ही प्रभावी रूप से बुलाया जाता है, धर्मी ठहराया जाता है, गोद लिया जाता है, पवित्र किया जाता है, और बचाया जाता है।
(i) 1 पतरस 1:2; 2 थिस्सलुनीकियों 2:13
(ii) 1 थिस्सलुनीकियों 5:9, 10
(iii) रोमियों 8:30; 2 थिस्सलुनीकियों 2:13
(iv) 1 पतरस 1:5
(v) यूहन्ना 10:26; 17:9; 6:64
पैराग्राफ़ -7
(i) भविष्यनिर्धारण के महान रहस्य के सिद्धांत को विशेष बुद्धिमानी और सावधानी के साथ संभाला जाना चाहिए, ताकि जो लोग परमेश्वर के वचन में प्रकट की गई परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान लगाते हैं और उसका आज्ञापालन करते हैं, उनको उनकी प्रभावशाली बुलाहट की निश्चितता के द्वारा उनके अनन्त चुनाव का आश्वासन दिया जा सके।(ii) इस प्रकार यह सिद्धांत निष्ठा के साथ सुसमाचार का पालन करने वालों में परमेश्वर की स्तुति, (iii) आदर , और प्रशंसा और साथ ही विनम्रता, (iv) लगन/परिश्रम और बहुतायत की शांति का कारण होगा।
(i) 1 थिस्सलुनीकियों 1:4, 5; 2 पतरस 1:10
(ii) इफिसियों 1:6; रोमियों 11:33
(iii) 20 रोमियों 11:5, 6, 20
(iv) 21 लूका 10:20