Reformed baptist church in jaipur

अप्रतिरोध्य अनुग्रह (Irresistible Grace)

अप्रतिरोध्य अनुग्रह का अर्थ होता है ऐसा अनुग्रह जिसका प्रतिरोध नहीं किया जा सकता या जिसको रोका नहीं जा सकता। लेकिन इस सिद्धांत के विरोधी तुरंत से कहेंगे कि हम परमेश्वर के अनुग्रह का प्रतिरोध करते हैं और यह बाइबल में स्पष्ट रूप से लिखा है। मैं उनसे सहमत हूँ। निश्चित रूप से बाइबल कहती है कि मनुष्य परमेश्वर के अनुग्रह का प्रतिरोध करते हैं। स्तिफनुस ने प्रेरितों 7 में अपने भाषण में कहा कि इज़राइली लोग हमेशा से विश्वास और पश्चाताप करने के बजाय पवित्र आत्मा का विरोध करते आएं हैं :

“हे हठीले, और मन और कान के खतनारहित लोगो, तुम सदा पवित्र आत्मा का विरोध करते हो। जैसा तुम्हारे बापदादे करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। भविष्यद्वक्‍ताओं में से किस को तुम्हारे बापदादों ने नहीं सताया? उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालों को मार डाला; और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए।” (प्रेरितों 7:51-52)

इब्रानियों का लेखक भी आज्ञा देता है कि उसके पाठक और श्रोता अपना मन कठोर न करें और पवित्र आत्मा का विरोध न करें बल्कि विश्वास और पश्चाताप करें:

“यदि आज तुम उसका शब्द सुनो,
तो अपने मनों को कठोर न करो,
जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया था।” (इब्रानियों 3:15)

तो फिर अप्रतिरोध्य अनुग्रह का क्या? अप्रतिरोध्य अनुग्रह का अर्थ होता है कि जब परमेश्वर चाहता है तो वह पापी की कठोरता, विरोध और शत्रुता को पराजित कर देता है और उसके अंदर ऐसा काम करता है कि यीशु मसीह उसको अप्रतिरोध्य रूप से चाहने योग्य लगने लगता है। परमेश्वर ऐसा अपने चुने हुओं के जीवन में अपने तय समय पर करता है। चूँकि मनुष्य पूरी तरह भ्रष्ट, पापों में मरा हुआ और परमेश्वर को चुनने का अनिच्छुक और उसके अधीन होने में असमर्थ है, उसके उद्धार की एक मात्रा आशा परमेश्वर के द्वारा उसका चुनाव और परमेश्वर का अप्रतिरोध्य अनुग्रह है जो उसको उसकी पाप में मरे होने की अवस्था से जीवित करके उसे यीशु मसीह को चाहने और ग्रहण करने की इच्छा और सामर्थ दे देता है।अब हम कुछ आयतें देखेंगे जो स्पष्ट रूप से बताती है कि परमेश्वर का अनुग्रह जब अपने चुने हुओं को बचाने आता है तो वे समर्पण कर देते हैं।

मैं तुम पर शुद्ध जल छिड़कूँगा, और तुम शुद्ध हो जाओगे; और मैं तुम को तुम्हारी सारी अशुद्धता और मूरतों से शुद्ध करूँगा। मैं तुम को नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा, और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूँगा। मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूँगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे।  (यहेजकेल 36:25-27)

—मनुष्य स्वाभाव से ही अशुद्ध होता है सच्चे परमेश्वर का आराधक होने के बजाय मूर्तिपूजक होता है, वह अपने आप को शुद्ध नहीं कर सकता। ना ही वह अपने आपको मूरतों की गुलामी से आजाद कर सकता है। इसलिए, जैसा आयत 25 में लिखा है, परमेश्वर ही अपने चुने हुए लोगों को उनके पापों और मूरतों से शुद्ध करता है।
—आदम की हर संतान का ह्रदय परमेश्वर से घृणा करने वाला और उसकी बुलाहट के प्रति कठोर होता है। मनुष्य का ह्रदय परमेश्वर विरोधी और परमेश्वर का विद्रोही होता है। जैसे पत्थर संवेदनशील नहीं होता, वैसे ही मनुष्य का ह्रदय भी परमेश्वर की बातों के प्रति संवेदनशील नहीं होता। लेकिन, जैसा आयत 26 में लिखा है, परमेश्वर संप्रभु रूप से मनुष्य के ह्रदय को बदल देता है। पत्थर का ह्रदय निकालकर मांस का ह्रदय रख देता है। अर्थात उसके ह्रदय को परमेश्वर के प्रति संवेदनशील बना देता है, जो अब परमेश्वर की बातों का विरोध नहीं करेगा, परन्तु उनके सामने समर्पण कर देगा। यह काम परमेश्वर सम्प्रभू रूप से (sovereignly) करता है; मनुष्य यह नहीं कर सकता (मत्ती 19:26)। पौलुस के साथ यह दमिश्क के मार्ग पर हुआ था।
—मनुष्य स्वाभाव से ही पाप का गुलाम होता है। वह न तो परमेश्वर की व्यवस्था के अधीन होता है और ना हो सकता है। वह वही करता है जो उसकी नज़रों में बुरा है। यहाँ तक कि वह पाप के अलावा कुछ करता ही नहीं। उसके धार्मिक या परहित के काम भी परमेश्वर की नज़रों में पाप ही होते हैं, क्योंकि वे यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा और सच्चे परमेश्वर की महिमा के लिए नहीं होते और जो विश्वास से नहीं और परमेश्वर की महिमा के लिए नहीं वे सब काम भले ही अच्छे काम हो तो भी पाप और मूर्तिपूजा ही हैं। परन्तु आयत 27 के अनुसार, सम्प्रभू परमेश्वर अपने चुने हुए मनुष्यों के अंदर अपना आत्मा डाल देता है और अपने आत्मा के द्वारा ऐसा करता है कि वे उसकी विधियों पर चलें और और उसके नियमों को मानें।

परमेश्वर का आत्मा ये पूरी शल्य चिकित्सा (heart transplant surgery) सम्प्रभू रूप से (sovereignly) करता है। पौलुस इस बात को शिक्षा के रूप में और दमिश्क के मार्ग में पाए अनुभव दोनों के आधार पर जनता था, इसीलिए वह लिखता है:

और न कोई पवित्र आत्मा के बिना कह सकता है कि यीशु प्रभु है। (1 कुरिन्थियों 12:3)

अर्थात यहेजकेल 36 में लिखे परमेश्वरीय कार्य के बिना कोई भी यीशु मसीह को उद्धार के लिए प्रभु नहीं कह सकता।

प्रभु यीशु मसीह खुद ने यूहन्ना 3:5 में कहा:

यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुझ से सच सच कहता हूँ, जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।

अर्थात यदि कोई पवित्र आत्मा से न जन्मे और उसके द्वारा वचन के जल से उसका शुद्धिकरण न हो जाए, तो उसका उद्धार असंभव है। परन्तु हमारे लिए इस लेख में मुख्य प्रश्न यह है कि यह कैसे होता है? क्या यह मनुष्य की इच्छा या अनुमति के द्वारा होता है? प्रभु यीशु मसीह खुद अगली आयतों में इसका उत्तर देते हैं :

क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। अचम्भा न कर कि मैं ने तुझ से कहा, ‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’ हवा जिधर चाहती है उधर चलती है और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।” (यूहन्ना 3:6-8)

आयत 6-7 में यीशु मसीह कहते हैं कि मनुष्य आत्मिक रूप से मरा हुआ पैदा होता है और उसको आत्मिक रूप से जन्म दिए बिना उसका उद्धार संभव नहीं। आयत 8 में वह पवित्र आत्मा की तुलना पवन से करता है कि जैसे पवन को हम नियंत्रित नहीं कर सकते, वैसे ही पवित्र आत्मा हमारे नियंत्रण में नहीं, बल्कि संप्रभु (sovereign) है और जब जिसको चाहता है नया जन्म दे देता है और शुद्ध कर देता है (तीतुस 3:5)। जैसे पवन अप्रतिरोध्य होता है वैसे पवित्र आत्मा चुने हुओं के जीवन में तय समय पर अप्रतिरोध्य होता है। पवित्र आत्मा अपने चुने हुओं को नए जन्म में नए स्नेह, नई प्रवर्तियाँ, नए झुकाव, नया प्रेम और विश्वास और पश्चाताप का दान दे देता है, जिसके द्वारा मनुष्य स्वेच्छा और आनंद के साथ प्रभु यीशु मसीह के पास आ जाता है। इन आयतों को देखिए:

तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन
स्वेच्छाबलि बनते हैं (भजन 110:3)

यह सुनकर अन्यजातीय आनन्दित हुए, और परमेश्‍वर के वचन की बड़ाई करने लगे; और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्‍वास किया। (प्रेरितों 13:48)

प्रभु येशु मसीह अन्यत्र भी ऐसी बातें कहते हैं:

यीशु ने उनको उत्तर दिया, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। कोई मेरे पास नहीं आ सकता जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँगा। भविष्यद्वक्‍ताओं के लेखों में यह लिखा है : ‘वे सब परमेश्‍वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ (यूहन्ना 6:43-45)

जब यहूदी लोग यीशु मसीह पर विश्वास नहीं कर रहे थे और क्रोध से भर के विचार कर रहे थे, तो प्रभु ने बोला कि मत कुड़कुड़ाओ, क्योंकि कोई भी मेरे पास नहीं आ सकता जब तक मेरा पिता उसे खींच के ना ले आए और जो आएंगे वे पिता की ओर से सिखाए हुए होंगे। यीशु मसीह स्पष्ट रीति से कह रहा है कि सब पाप में मारें हुए हैं और उसके पास आने में असमर्थ है और सिर्फ वो ही आ सकते हैं, जिन्हे उसका पिता अप्रतिरोध्य रूप से (irresistibly) खींच के लाता है।

परमेश्वर का धन्यवाद हो इस अप्रतिरोध्य अनुग्रह के लिए जो कि मनुष्यों के उद्धार की एक मात्र आशा है।